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राकेश टिकैत और तीन वीरगति प्राप्त कानून

खालिस्तानवाद और किसानवाद की भेंट चढ़े तीन गोरे कानून
राकेश टिकैत को समझ आई अपनी हैसियत
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,
उ़त्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि वीरगति प्राप्त तीन कृषि कानून बहुत अच्छे थे। दिल्ली की सीमाओं को एक साल घेरे बैठे रहे लोग वास्तव में किसान नहीं थे। वे किसानों के माईबाप थे। जो चाहते हैं कि किसान उनके इशारों पर नाचें। ये लोग एक साल तक दिल्ली की केजरीवाल सरकार की मिलीभगत से दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहे। जिसके चलते तमाम गाँवों की माताओं बहनों को जिल्लत का सामना करना पड़ा। माताओं बहनों के मानवाधिकारों को कुचला गया। सुप्रीम कोर्ट चुप बैठा रहा। ठीक उसी अंदाज में जैसे कि सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग मामले में चुप बैठा रहा था। लोगों का सबसे बड़ा मानवाधिकार होता है कि वे रास्तों और सड़कों पर बिना रूकावट आ जा सकें। उनके लिए पाँच किलोमीटर का रास्ता 15 किमी लम्बा न हो जाए। सुप्रीम कोर्ट की उदासीनता देश के लिए ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का पहला काम है देश के मानवों के मानवाधिकारों की रक्षा करना। मानवाधिकार केवल आन्दोलनकारियों के नहीं होते और आन्दोलन भी ऐसा जिसमें कानूनों को स्थगित रखा गया था। ये जो भी दिल्ली के बार्डर पर हुआ और लाल किले पर हमला किया गया यह सब लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। रही बात राकेश टिकैत की तो इस आदमी को समझ में आ गया होगा कि इसकी हैसियत क्या है। जाटों में अधिकतर लोग किसान होते हैं। भले ही इनमें सरकार को लेकर कोई नाराजगी रही हो परन्तु इन्होंने भाजपा को ही वोट दिया है। दो लड़के मुटिठयाँ बाँध-बाँध कर हवा में उछाल रहे थे। मोदी को सबक सिखाने के इरादे जता रहे थे धराशायी हो गए। योगी जी ने तमाम षड़यंत्रों के बावजूद सपा से दोगुना से 23 सीटें ज्यादा जीती और 37 साल बाद किसी मुख्यमंत्री की वापसी नहीं होने वाले भ्रम की धज्जियाँ उड़ा दीं।

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  वीरेन्द्र देव गौड़/सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला

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