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गुरु तेग बहादुर का 401वां प्रकाश पर्व मनाया गया

नई दिल्ली। श्री गुरु तेग बहादुर जी के 401वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में, आज श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया। श्री गुरु तेग बहादुर सिक्खों के नौवें गुरू थे। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में उनका योगदान अविस्मरणीय हैं।
इस कार्यक्रम का आयोजन चेतना के अधिकार और अपनी पसंद के धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के सर्वोच्च बलिदान को याद करने के लिए किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में स्मृति ईरानी, केंद्रीय मंत्री, महिला एवम् बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार उपस्थित थी। इसके अलावा सरदार हरमीत सिंह, मनजिंदर सिंह सिरसा, सरदार जगदीप सिंह आदि कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
इसकी शुरुआत शबद कीर्तन से की गई। गुरू तेग बहादुर के बलिदान एवम् उनके भारतीय समाज में दिए गए योगदान को याद करते हुए उन्होंने गुरू अंगद देव को भी स्मरण किया। प्रो मंजीत सिंह ने पंजाबी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी गुरू तेग बहादुर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध और अनुवाद कार्यों को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।
उसके बाद सरदार तरलोचन सिंह ने मंच से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले पर उनके दिए गए भाषण को उद्धृत करते हुए आज के युग में गुरू तेग बहादुर के आदर्शो व मूल्यों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि स्मृति ईरानी एवम् अन्य गणमान्य अतिथियों को भी स्मृति चिन्ह व शॉल द्वारा सम्मानित किया गया।
सरदार मंजिंदर सिंह सिरसा ने अपने वक्तव्य में जबरन वैश्विक स्तर पर हो रहे धर्म परिवर्तन को तथा सिख पंथ के सभी गुरुओं को स्मरण करते हुए उनके त्याग बलिदान की भी बात श्रोताओं के समक्ष रखी।
सरदार एस हरमीत सिंह कालका ने स्मृति ईरानी एवम् प्रधानमंत्री का चार साहिबजादों के बलिदान को देश में वीर बाल दिवस के रूप में मनाने के निर्णय के लिए धन्यवाद दिया।
सरदार मनजिंदर सिंह सिरसा ने युवाओं को गुरु तेग बहादुर के मूल्यों से प्रेरणा ग्रहण कर समाज में एकता और समरसता को बनाए रखने का संदेश दिया। साथ ही, स्मृति ईरानी द्वारा कॉलेज को प्रदान किए गए उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि स्मृति ईरानी ने गुरू तेग बहादुर के त्याग और बलिदान को भारत की पंथनिरपेक्ष परंपरा से जोड़ते हुए युवाओं को संदेश दिया कि आज के युग में अन्याय से लड़ने में तकनीकी और शिक्षा ही सबसे बड़ा शस्त्र है और हमारे युवाओं को पूरी कुशलता और सक्षमता से इसका सदुपयोग करना चाहिए।

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