दुश्मन की गर्दन पर
रखकर तलवार
बात जो करता था
जिसकी त्योरियाँ चढ़ते ही
दुश्मन घिघियाने लगता था
जो आर-पार की बोली से
दन-दन गोली चलता था
देश दिल में रखकर
जो दिन रात तपस्या करता था
धड़कन-धड़कन में जो
जय भारत का दम भरता था
सैनिक-सैनिक अफसर-अफसर का
जो खुद से ज्यादा खयाल रखता था
उसकी वीरगति पर हमको
संदेह की धुंध का
जमावड़ा दिखता है
कुन्नूर के उस जंगल का
चप्पा-चप्पा हमको डसता है।
वज़ह बताओ तुरन्त बताओ
हमने दर्जनभर से ज्यादा को खोया है
योद्धाओं की ऐसी वीरगति पर
ज़मीर हमारा रोया है
षड़यंत्र है तो
षड़यंत्रकारियों पर
मौत के शोले बरसाओ
विध्वंस का तांडव
कायर दुष्टों पर बरपाओ
भारत के माथे पर
शौर्य का फड़कता टीका लगाओ
सीनों में जलती चिताओं पर हमारी
चुप्पी का घी छिड़क कर
लपटों को लावा मत बनाओ
धीरज की बीन बजाना छोड़ो
जाँच को सरपट आगे दौड़ाओ
जख़्मी भारत की गर्जना से
दुश्मनों को दहलाओ
माँ भारती के सूपत कहलाओ।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव)

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