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सागर गिरि आश्रम के पास रिस्पना वाली छठ पूजा यादगार रही

-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान

बीते दिवस रिस्पना की छठ पूजा ने श्रद्धालुओं को छठ महोत्सव के महत्व का आभास करा दिया। परमपूज्य महात्मा अनुपमा नंद गिरी महाराज और परम पूज्य व्यास शिवोहम बाबा की छत्रछाया में छठ मइया के महोत्सव की ऐसी धूम मची कि श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे। पूज्य सागर गिरी महाराज आश्रम के पास रिस्पना नदी यानी ऋषिपर्णा नदी में एक दिन पहले से ही भरपूर तैयारियाँ की जा रही थीं ताकि छठ पूजा के अधिक से अधिक भक्त इस महान परम्परा को भक्ति भाव से मना सकें और अपने आराध्यों के प्रति समपर्ण भाव प्रकट कर सकें। भव्य पण्डाल रिस्पना में ही सजाया गया था। व्यवस्था इस तरह की गई थी कि सम्पूर्ण हिन्दू सनातन परम्परा जागृत अवस्था में महसूस की जा सके। रोज की तरह धार्मिक प्रभात फेरी सागर गिरी आश्रम से निकली और तेगबहादुर रोड़ नई बस्ती से होते हुए छठ पूजा स्थल पहुँची। यहाँ मिथिला समाज छठ पूजा पण्डाल में भजन कीर्तन सम्पन्न हुआ। सनातनी परम्पराओं के अनुसार समस्त देवी देवताओं का स्तुति गान हुआ। इसी क्रम में छठ पूजा की सभी रीतियों को निभाते हुए छठ पूजा का सिलसिला आगे बढ़ा। छठ मइया के भजनो की गूँज में श्रद्धालु अपने आपको भूल बैठे। श्रद्धालु रिस्पना में ऐसे झूम रहे थे जैसे साक्षात देवी देवता छठ पूजा स्थल पर उतर आए हों। समस्त सनातन परम्पराओं और छठ पूजा की रीति रिवाजों का ऐसा अद्भुत संगम शायद ही पहले कभी श्रद्धालुओं ने अनुभव किया हो। श्रद्धालु तो श्रद्धालु महाराज अनुपमा नंद गिरी और पूज्य व्यास शिवोहम बाबा भी सुधबुध खोकर झूम उठे। रिस्पना में सूर्य उदय से पहले ऐसा छठ पूजा महोत्सव देख कर दर्शक प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। विदित रहे कि सनातन हिन्दू परम्पराओं के प्रचार प्रसार के लिए सागर गिरी महाराज आश्रम , तेगबहादुर मार्ग से बीते एक महीने से धार्मिक प्रभात फेरियों का आयोजन चल रहा है। इसी धार्मिक प्रभात फेरी के बाद छठ पूजा का महोत्सव धूमधाम से सम्पन्न हुआ। रिस्पना नदी में सूर्य पूजा के लिए जल की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। कुल मिला कर छठ पूजा के सभी भक्त इस प्रयास से सन्तुष्ट दिखाई दिए। छठ पूजा सनातन परम्परा का ही शुभ विस्तार है जिसमें सूर्य देव की आराधना प्रमुख रूप से शामिल हैं। भक्त महिलाएं पूरी तैयारी के साथ सजधज कर इस समारोह में अपनी श्रद्धा प्रकट करती हैं। अब यह धार्मिक महोत्सव किसी प्रांत विशेष तक सीमित नहीं है। अब तो यह धार्मिक महोत्सव अखिल भारतीय स्वरूप लेता जा रहा है। भगवान राम के ससुराल से यानी मिथला प्रदेश से भले ही इस धार्मिक महोत्सव का प्रारम्भ हुआ हो लेकिन यह धार्मिक महोत्सव अब पूरे उत्तर भारत को लुभाने लगा है। सनातन धार्मिक परम्पराओं की यशवृद्धि के लिए हम सभी श्रद्धालुओं को इन श्रेष्ठ परम्पराओं को समृद्ध करना चाहिए। एक भारत और श्रेष्ठ भारत के साथ-साथ तेजोमय भारत के लिए भी यह सब आवश्यक है।

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