(नेशनल वार्ता ब्यूरो)
शहर में मवेशियों को बेचने पर नए कानून को लेकर मचे घमासान के बीच कोलकाता का पूरी तरह से ऑटोमैटिक कसाईखाना अब बंद होने के कगार पर है। इससे पहले गायों को बचाने और गोरक्षा के नाम पर और फिर मवेशियों की बिक्री के नए कानून ने देश के पहले ऑटोमैटिक कसाईखाने पर ताला लगाने की रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। कोलकाता म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन इस महीने के अंत तक इसे बंद करने का फैसला ले सकता है। कसाईखाने की शुरुआत 2012 में की गई थी। कसाईखाने की हालत खस्ता उस वक्त हो गई जब 2016 दिसंबर से उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों से आने वाले मवेशियों की संख्या में भारी गिरावट शुरू हुई। वहीं, इसी महीने से उत्तर प्रदेश और बिहार से होने वाली मवेशियों की बड़ी आपूर्ति में बड़े पैमाने पर गिरावट दर्ज की गई। केएमसी हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से दिए बयान में कहा गया है कि 800 भैंसें अमूमन रोज कसाईखाने में पहुंचते थे। उत्तरी राज्यों में गाय को लेकर मचे बवाल के बाद यह संख्या गिरकर 200 तक पहुंच गई है। मार्च में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के समय ही यह आंकड़ा कम हुआ। उत्तर प्रदेश चुनाव नतीजों के डेढ़ महीने बाद तक भी आंकड़ा आगे नहीं बढ़ सका। इस वजह से प्रशासन को फिर से सोचना पड़ रहा है कि नई सुविधाओं को जारी रखा जाए अथवा नहीं। कसाईखाने में अब न्यूनतम काम भी नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ मवेशियों की बिक्री को लेकर सरकार के नए कानून ने स्थिति और भी गंभीर कर दी है। एक तरह से यह कसाईखाने को बंद करने के लिए ताबूत में आखिरी कील की तरह है। पूरी तरह से ऑटोमैटिक इस कसाईखाने में प्रतिदिन 1200 पशुओं को स्टोर करने और उन्हें काटने की व्यवस्था है। शहर के लोगों के लिए व्यवस्थित और सफाई के मानकों का पूरा ध्यान रखते हुए मीट सप्लाइ के लिए यह कसाईखाना बहुत उपयोगी था। कसाईखाने का निर्माण 25 करोड़ की लागत से किया गया था जो कि भारत के सबसे महंगे लागत वाले कसाईखानों में से एक है। अब कोलकाता में छोटे पैमाने पर व्यक्तिगत तौर पर चलाए जा रहे कसाईखाने ही बचे हैं, जहां बिना मेडिकल जांच के ही बड़े जानवरों को मीट के लिए काटा जा रहा है।
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