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महाराणा प्रताप की चरण वन्दना

-वीरेन्द्र देव गौड़, पत्रकार, देहरादून
शूरवीरों के शूरवीर महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ की माटी में हुआ था। महाराणा प्रताप मेवाड़ की पराक्रमी माटी में जन्में ऐसे शौर्यवान राजा थे जो वीरता के साथ-साथ स्वाभिमान के मामले में भी कभी समझौता नहीं करते थे। उन्होंने सौंगन्ध खाई थी कि वे मेवाड़ की माटी ही नहीं बल्कि देश को मुगलों की पराधीनता से मुक्त करेंगे। उनकी इस सौगन्ध के बावजूद राजपूताना के राजे महाराजे अकबर की शरण में बैठे रहे। महाराणा प्रताप के आह्वान के बाद भी राजपूताना के राणाओं का खून नहीं खौला। वे महाराणा प्रताप की तरह तलवार की धार पर चलने को तैयार नहीं हुए। वे अकबर के प्यादे बन कर रह गए। इन प्यादों में जयपुर के बिहारी मल, उनके पुत्र मानसिंह और जोधाबाई के पिता शामिल हैं। महाराणा प्रताप ने सौगन्ध खाई थी कि वे अकबर के सामने झुकेंगे नहीं। 26 साल तक महाराणा प्रताप ने सन्यासी का जीवन जीया। वे पत्तल पर खाना खाते थे। घासफूस के बिछौने पर सोते थे और साधारण खाना खाते थे। उन्होंने यह भी सौगन्ध खाई थी कि वे मेवाड़ के सारे किले वापस लेने तक दाढ़ी नहीं कटवाएंगे। अकबर ने एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन वह कभी महाराणा प्रताप को हरा नहीं पाया। एक बार अकबर ने 8 महीने तक महाराणा प्रताप की घेराबंदी की थी। लेकिन 8 महीने के बाद वह महाराणा प्रताप के गोरिल्ला हमलों से तंग आकर अपनी जान बचाकर राजधानी आगरा भाग गया था। वह महाराणा प्रताप की तलवार से जीवन भर भयभीत रहा। एक समय ऐसा भी आया था जब उसने मन से महाराणा प्रताप से हार मान ली थी और मेवाड़ की ओर नजर उठाने से तौबा कर ली थी। ऐसे थे हमारे महाराणा प्रताप। महाराणा प्रताप केवल एक किले को वापिस जीत नहीं सके थे क्योंकि इस विकट संघर्ष के दौरान रात दिन की दौड़ भाग के कारण वे मात्र 58 साल की आयु में अपने आराध्य भगवान एकलिंग की आभा में समा गए। हमें स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत 1572 से करनी चाहिए। क्योंकि महाराणा प्रताप ही वे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने माँ भारती को आक्रांताओं की दासता से स्वतंत्र करने की सौगन्ध खाई थी और अंतिम पल तक अपनी सौगन्ध पर अटल रहे। सन् 1572 में उन्हें महाराणा
घोषित किया गया था।

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