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क्या माता शाकुम्बरी भी रियासत के अधीन हैं ?

वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम0एस0 चौहान 
आनन्द आ गया। रामकृष्ण प्रदेश अर्थात् उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर में कथित जसमौर रियासत के अन्दर विराजमान माता शाकुम्बरी शक्तिपीठ का दर्शन लाभ मिला। पूज्य अनुपमानंद गिरी महाराज और शिवोहम बाबा की प्रेरणा और मार्गदर्शन आर्य सनातन हिन्दुओं के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। ऐसे ही संतों की आवश्यकता है राष्ट्र को जो तरह-तरह के कष्ट उठा कर भक्तों को सही दिशा दें। देहरादून में सागर गिरी आश्रम से 5 बसों में भक्तजन अपार हर्ष के साथ शक्तिपीठ माता शाकुम्बरी के दर्शन के लिए निकले। रास्ते में महिलाओं ने तरह-तरह के बेजोड़ भजन गाकर आत्मा को तृप्त कर दिया। खिड़की से बाहर झाँकते ही मोदी जी और गड़करी जी के पुरूषार्थ की झलकियाँ देखने को मिल रही थीं। ऐसे ही नेता देश को पुरूषार्थ के रास्ते पर ले जा सकते हैं मगर कुछ और भी चाहिए राष्ट्र के लिए। यह कुछ और विकास से भी ज्यादा जरूरी है। भूरादेव के पावन मंदिर से लेकर माता शाकुम्बरी तीर्थ पीठ तक एक बहुत बड़ी कमी खटकती रही। शौचालयों का ना के बराबर होना। भूरादेव मंदिर के सामने एक किशोर बालक मल त्याग कर रहा था। उसका पिता पानी की बोतल लेकर उसकी सहायता कर रहा था। कुछ महिलाएं लघुशंका के लिए जगहें तलाश रही थीं। कई पुरूष बेशर्मी के साथ कहीं भी खड़े होकर लघुशंका समाधान कर रहे थे। भूरादेव परिसर से लेकर माता मंशादेवी और माता शाकुम्बरी देवी तक लघुशंका समाधान के लिए कोई कारगर व्यवस्था दिखाई नहीं पड़ी। इस विड़म्बना से मन बहुत दुःखी हुआ। क्या सनतनी हिन्दू इसी तरह अपना जीवन काट देगा। क्या हमें भान नहीं कि माता शाकुम्बरी के पावन और विशेष तीर्थ धाम के आसपास शौंच और लघुशंका की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। मंदिर परिसरों में दो चार शौचालय बना देने से दिखावा तो हो सकता है लेकिन नैतिक कर्तव्य की पूर्ति नहीं होती। माननीय योगी जी से प्रार्थना है कि वे तमाम अड़चनों को दूर कर महान शाकुम्बरी माता धाम की इन विड़म्बनाओं को समाप्त करें ताकि सम्मानित माता बहनें इस तरह की उधेड़बुन से बच सकें । माताओं बहनों को झाड़ियों और पेड़ों की आड़ तलाशते देखना क्या संतों को और राजनेताओं को स्वीकार है। चाहे कथित जसमौर रियासत आड़े आती हो या फिर वन विभाग, योगी जी को अपना परम्परागत पुरूषार्थ दिखाना ही होगा। वे नाथ साम्प्रदाय के महान योगी हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं। लिहाजा, सन् 1984 में माता वैष्णो देवी के पावन चरणों से नदी बहा करती थी। नदी मेें एड़ी के काफी ऊपर तक स्वच्छ जल बहता था। आज वह पावन जल गायब है। इस तरह पर्यावरण की धुआँधार बरबादी बहुत दुःखदाई है। लेखक दुःखी होकर माता वैष्णो देवी के मंदिर को सूखी नदी से प्रणाम कर वापस लौटा। क्योंकि ठीक माता शाकुम्बरी के सामने कथित जसमौर रियासत की लम्बी चौड़ी घेराबंदी को देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। बोर्ड पर लिखा है कि यह जसमौर रियासत के प्रतिनिधियों की कब्रगाह है। सवाल यह उठता है कि कथित जसमौर रियासत को यही जगह कब्रगाह के लिए मिली थी। या इस बात को दूसरे तरीके से कहें तो क्या माता शाकुम्बरी के लिए पावन स्थल कहीं अन्यत्र नहीं मिला। सच तो यह है जहाँ कहीं हिन्दू तीर्थ होगा वहाँ ठीक सामने कुछ न कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जो यह सिद्ध करेगा कि हम आज भी सल्तनत काल में रह रहे हैं। हम मुगल काल से बाहर नहीं निकल पा रहे। हमारे देवी देवता आज भी उनके अधीन है। लेखक दुखी मन से जब घाटी में घूम रहा था तो उसे सूखी नदी के किनारे एक हरा तप्पड़ मिला। जहाँ दो जर्जर कुओं ने लेखक को अपने पास बैठा लिया। लेखक इन दो कुओं की जर्जन अवस्था को देख कर बहुत दुखी हुआ। हम जल के स्रोतों को नष्ट करते रहे हैं। हम हमारी सनातन संस्कृति को पराधीनता से बाहर नहीं ला पा रहे हैं। इस सब के बावजूद महंत अनुपमानंद गिरी महाराज की तपस्या को हम प्रणाम करते हैं। उन्होंने पूरी व्यवस्था को सागर गिरी आश्रम से लेकर माता शाकुम्बरी देवी तक बड़ी सूझबूझ के साथ संचालित किया। भण्डारे की व्यवस्था बहुत अच्छी रही। श्रद्धालुओं ने प्रशंसा की। ऐसे प्रयास चलते रहने चाहिएं तभी तो सच्चाई सामने आएगी। सभी श्रद्धालु प्रसन्नता के साथ गए और पावन तीर्थ से पुण्य लाभ अर्जित कर सकुशल लौटे। माता शाकुम्बरी का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे। अनुपमा नंद गिरि और शिवहोम बाबा के परिजन भी भण्डारे को सफल बनाने में जुटे हुए थे। पूरियां तल रहे थे और प्रसाद तैयार करने के लिए आग सुलगा रहे थे। समर्पण भाव हो तो ऐसा। अपने भी अपने और पराए भी अपने। अंत में यह लिखना भी जरूरी है कि माता शाकुम्बरी की पावन घाटी में मोबाईल बेदम हो गए। पुलिस स्टेशन तो है वहाँ लेकिन नेटवर्क न होने से श्रद्धालुओं को एक-दूसरे से संपर्क करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। यह कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं है जिसका समाधान न हो।

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