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सागर गिरी आश्रम में मचेगी साझे चूल्हे की धूम

-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव गौड़), एवं एम0एस0 चौहान देहरादून
चल रहे इस महीने के समापन दिवस की संध्या देहरादून में तेगबहादुर मार्ग स्थित सागर गिरी आश्रम में बहार लेकर आएगी। इस संध्या में कड़वापानी स्थित हरिओम आश्रम के महंत अनुपमानंद गिरी महाराज और व्यास शिवोहम बाबा के प्रयासों से सागर गिरी आश्रम में साझे चूल्हे का भव्य आयोजन होने जा रहा है। हमारे सनातन धर्म में कई सामाजिक परम्पराएं धर्म के भाव से मनाई जाती रही हैं। साझा चूल्हा ऐसी ही एक संवेदनशील सामाजिक परम्परा है। अनुपमानंद गिरी महाराज सनातन संस्कृति के हर पहलू को लोगों के सामने लाकर जागृति लाना चाहते हैं। जागृति से ही हिन्दू एकता को बढ़ावा मिलेगा। लिहाजा, सागर गिरी आश्रम में आसपास की माताएं बहने साझे चूल्हे का आयोजन कर सामाजिक प्रेम के आदान प्रदान का उदाहरण सामने रखेंगी। इस मामले में माताओं बहनों में इच्छाशक्ति का अनुभव किया जा सकता है। जिस समाज की माताएं बहने जागृत होंगी वही समाज जीवित माना जा सकता है। कुछ दिन पहले रविवार के दिन सागर गिरी आश्रम के आसपास के लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर के लोग सिद्धपीठ की यात्रा में आए थे। पाँच बसों में सवार ये श्रद्धालु पूरे उत्साह के साथ माता शाकुम्बरी के दर्शन का लाभ पाने गए और धन्य होकर लौटे। इस सिद्धपीठ की धर्म यात्रा में भी महंत अनुपमानंद गिरी महाराज और शिवोहम बाबा ने संपूर्ण समर्पण भाव से श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया था। यह शाकुम्बरी धर्मपीठ यात्रा बहुत सफल रही थी। श्रद्धालुओं ने अपने श्रद्धाभाव से इस यात्रा में प्रतिभागिता की। इस धर्मयात्रा से पहले अनुपमानंद गिरी महाराज और शिवोहम बाबा के मार्गदर्शन में देहरादून के चार कोनों में स्थित चार सिद्ध धामों की पावन धर्म यात्रा का श्रद्धालुओं ने पुण्य लाभ पाया था। ये चार सिद्धधाम लक्ष्मण सिद्ध धाम, कालू सिद्ध धाम, मानक सिद्ध और मांडू सिद्ध धाम के नाम से प्रसिद्ध हैं। ऐसी धर्मयात्राओं से श्रद्धालुओं का विवेक तो जागृत होता ही है साथ में उन्हें जीवन जीने की कला का भी अनुभव होता है। श्रद्धालुओं को जीवन की सार्थकता का ज्ञान होता है और सनातन हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा मिलता है। सनातन हिन्दू संस्कृति जीओ और जीने दो के सनातन सिद्धांत पर आधारित है। धर्म यात्राओं से कई तरह के लोगों को अर्थ लाभ प्राप्त होता है। एक दूसरे पर यह निर्भरता ही सनातन संस्कृति की आत्मा है। अब 31 दिसम्बर के दिन साझे चूल्हे का सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन होगा जो श्रद्धालुओं के अंदर आपसी सद्भाव को बढ़ावा देगा। यही आपसी सद्भाव संस्कृति का एक हिस्सा है। तभी तो साझे चूल्हे के कार्यक्रम को सामाजिक और सांस्कृतिक कहा जा रहा है। रही बात शाकुम्बरी देवी सिद्धपीठ धर्म यात्रा की तो ऐसा दिव्य अवसर साल में कम से कम एक बार तो मिलना ही चाहिए। शाकुम्बरी देवी सिद्धपीठ की ख्याति से देहरादून और उत्तराखण्ड के लोगों को भलीभाँति परिचित होना चाहिए। वैसे भी माता शाकुम्बरी शक्तिपीठ देहरादून से मात्र 2 घंटे के फासले पर विराजमान हैं। जब आप बस से यात्रा करें। निजी वाहन से तो मात्र सवा घंटे में वहाँ पहुँचा जा सकता है। व्यवस्था के लिए लगभग साढ़े आठ बजे सुबह माता के सिद्धपीठ से लगभग एक किमी पहले मुख्य प्रवेश द्वार पर बसों को रोक दिया जाता है। हल्के वाहन जाने दिए जाते हैं। व्यवस्था के लिए यह उचित भी है। थोड़ा बहुत पैदल चलने से लाभ ही लाभ हैं। जो लोग किसी प्रकार से अस्वस्थ होते हैं उनके लिए हल्के निजी वाहन वहाँ खड़े रहते हैं। ई-रिक्शा की बात करें तो बीस रूपये में आप माता के दरबार तक जा सकते हैं। निजी कार है तो कोई बात नहीं। छोटे चौपहिया वाहनों के आने जाने पर वहाँ कोई रोक नहीं है। महंत अनुपमानंद गिरी महाराज को आप श्रद्धालुओं के लिए रसोई पकाते हुए स्वयं देख सकते हैं। महंत जी के रूप में हमें ऐसे सहज संत मिले हैं जो सभी से मित्रवत व्यवहार करते हैं। संत वही जो निर्मल स्वच्छ बहते हुए जल की तरह निष्कपट और पावन हो। जनवरी माह के पहले दिन सागर गिरी आश्रम में सुन्दरकांड का सुन्दर आयोजन होगा और आपको भण्डारे के पवित्र प्रसाद के रूप में देवी देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। सनातन धर्म की जय। सागर गिरी महाराज की जय। ध्यान योगी चूड़ामणि गिरी महाराज की जय। भारत माता की जय। गऊ माता की जय। सागर गिरी महाराज आश्रम के श्रद्धालुओं की जय।

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