 नेशनल वार्ता ब्यूरो-देहरादून की सीमा पर स्थित प्रसद्धि लक्ष्मण सिद्ध धाम के परिसर के पास गुज्जरों के लगभग 12 परिवार रहते हैं। ये लोग इस जगह पर तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं लेकिन अभी तक ना तो इन्हें पीने का पानी उपलब्ध है और ना ही इन्हें बिजली दी गई है। हालाँकि, बाकायदा ये लोग राशन कार्डधारी हैं और मतदाता भी हैं। जिन लोगों के राशन कार्ड है और जो मतदान कार्ड भी रखते हैं उन्हें बिजली-पानी से वंचित क्यों रखा गया। क्या सेना क्षेत्र में रहने की वजह से इनके साथ ऐसा हो रहा है। अगर ऐसा है तो लक्ष्मण सिद्ध मंदिर में तो बिजली भी है और पानी भी। यहाँ
नेशनल वार्ता ब्यूरो-देहरादून की सीमा पर स्थित प्रसद्धि लक्ष्मण सिद्ध धाम के परिसर के पास गुज्जरों के लगभग 12 परिवार रहते हैं। ये लोग इस जगह पर तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं लेकिन अभी तक ना तो इन्हें पीने का पानी उपलब्ध है और ना ही इन्हें बिजली दी गई है। हालाँकि, बाकायदा ये लोग राशन कार्डधारी हैं और मतदाता भी हैं। जिन लोगों के राशन कार्ड है और जो मतदान कार्ड भी रखते हैं उन्हें बिजली-पानी से वंचित क्यों रखा गया। क्या सेना क्षेत्र में रहने की वजह से इनके साथ ऐसा हो रहा है। अगर ऐसा है तो लक्ष्मण सिद्ध मंदिर में तो बिजली भी है और पानी भी। यहाँ  की प्रधान ने हमें बताया कि ये लोग कई बार मिन्नतें कर चुके हैं लेकिन इन्हें बिजली और पानी नहीं दिया जा रहा है। इन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया जाता है लेकिन इन्हें इनकी प्रेरणा का ईनाम नहीं मिलता। गुज्जर महिला प्रधान का कहना है कि ये लोग वन विभाग को चुगान का टैक्स भी देते हैं। इसके बावजूद इन्हें नागरिकों की जरूरत उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। महिला प्रधान का कहना है
की प्रधान ने हमें बताया कि ये लोग कई बार मिन्नतें कर चुके हैं लेकिन इन्हें बिजली और पानी नहीं दिया जा रहा है। इन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया जाता है लेकिन इन्हें इनकी प्रेरणा का ईनाम नहीं मिलता। गुज्जर महिला प्रधान का कहना है कि ये लोग वन विभाग को चुगान का टैक्स भी देते हैं। इसके बावजूद इन्हें नागरिकों की जरूरत उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। महिला प्रधान का कहना है कि 40 रूपये किलो के हिसाब से लोग इनसे दूध ले जाते हैं और बाजार में 50 से 60 रूपये प्रति किलो के हिसास से बेचते हैं। यही इनके खर्चेपानी का आधार है। ये लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे क्योंकि आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। ये चाहते है कि इनके बच्चे हमेशा की तरह अनपढ़ ना रह जाएं और पढ़े लिखें। पढ़ लिख कर आगे
 कि 40 रूपये किलो के हिसाब से लोग इनसे दूध ले जाते हैं और बाजार में 50 से 60 रूपये प्रति किलो के हिसास से बेचते हैं। यही इनके खर्चेपानी का आधार है। ये लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे क्योंकि आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। ये चाहते है कि इनके बच्चे हमेशा की तरह अनपढ़ ना रह जाएं और पढ़े लिखें। पढ़ लिख कर आगे  बढे। इनका यह भी कहना है कि बंदर इनके बच्चों को घायल कर देते हैं। एक इंजेक्शन लगाने में 300 से 350 रूपये तक का खर्चा आता है। इस तरह तीन इंजेक्शनों में 1200 से ज्यादा का खर्चा हो जाता है। यह खर्चा फालतू वाला है। सरकार से इनका यही अनुरोध है कि अगर इन्हें बिजली और पानी की सुविधा नहीं दी जा सकती तो इन्हें सरकार कहीं पर जमीन उपलब्ध करा दे। ये जंगल छोड़ सकते हैं। कुल मिला कर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के इतने पास रहने वाले इन वन गुज्जरों को ऐसी समस्याओं से जूझते देखना हैरानी पैदा करता है।
बढे। इनका यह भी कहना है कि बंदर इनके बच्चों को घायल कर देते हैं। एक इंजेक्शन लगाने में 300 से 350 रूपये तक का खर्चा आता है। इस तरह तीन इंजेक्शनों में 1200 से ज्यादा का खर्चा हो जाता है। यह खर्चा फालतू वाला है। सरकार से इनका यही अनुरोध है कि अगर इन्हें बिजली और पानी की सुविधा नहीं दी जा सकती तो इन्हें सरकार कहीं पर जमीन उपलब्ध करा दे। ये जंगल छोड़ सकते हैं। कुल मिला कर उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के इतने पास रहने वाले इन वन गुज्जरों को ऐसी समस्याओं से जूझते देखना हैरानी पैदा करता है।
 
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