
प्रवासी मजदूर अमित कुमार और गर्भवती पत्नी दीपाली
काँप रही है धार कलम की
अँगुलियों का कम्पन बढ़ता है
दिल की तेज धड़कनों का अन्दाज यह कहता है
ऐ सात माह की गर्भधारी दीपाली
तुझे मैं भारत के दिहाड़ी मजदूरों की नायिका कहूँ
देश के मेहनतकश-वर्ग की प्रेरणा कहूँ
मजदूर-महिलाओं का स्वाभिमान कहूँ
गरीब महिला शक्ति की विवशता कहूँ
नारी के आत्म-सम्मान की पहचान कहूँ
संघर्ष की झकझोर कर रख देने वाली दास्तान कहूँ
भारत में गरीबी का निष्ठुर इम्तहान कहूँ
देश की सरकारी और गैर-सरकारी मशीनरी का अन्धा विधान कहूँ
तुझे मैं हौंसले की वीरान एक चट्टान कहूँ
या कि तुझे मदर इंडिया कहकर तेरा गुणगान करूँ
बताओ नौजवान मजदूर अमित कुमार की पत्नी
मैं तुम्हारी हिम्मत और तुम्हारे साहस को कहूँ तो क्या कहूँ।
डरपोक नहीं हूँ देवी
किन्तु डर रहा हूँ
एक बार मरने वालों में से हूँ देवी
लेकिन मर रहा हूँ
फौलाद का दम-खम रखता हूँ देवी
मगर पिघल रहा हूँ
तुमने भूखे-प्यासे रहकर पैदल खुद को उठाया
तुमने सैकड़ों किलोमीटर गर्भवती होते हुए खुद को ढोया
जनकपुरी, दिल्ली से भागलपुर, बिहार तक का भारत रहा सोया
यह जानकर देवी हर मानवतावादी खूब होगा रोया
न जाने तेरे पराक्रमी पति और माँ बनने जा रही दीपाली
तुम दोनों का इस समय क्या हाल होगा
सज्जनता, मेहनत और भोलेपन की दो मिसालो
आशा है भरपूर कि गर्भ में तुम्हारा बच्चा सकुशल होगा।
कम से कम छह दिनों की दिल दहला देने वाली इस यातना में
दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार को तुम दोनों ने नापा
बरेली के पुलिस वालों ने तुम्हारी दुर्दशा को आँका
तुम्हारी मदद के लिए ये पुलिस वाले हैं साधुवाद के हकदार
दीपाली, तुम्हारे सूजे पैरों को कुछ तो मिला होगा राहत का आधार
हमारे देश की सरकारों के लिए
तुम जैसे प्रवासी मजदूर होने चाहिएं नीतियों का सार
तुम जैसों की खुशहाली के बिना हर सफलता है निराधार
लोक कल्याणकारी राज्य में तुम्हारी दुर्दशा का उदाहरण मानवता का है संहार
नन्हे-नन्हे बच्चे माता-पिता के साथ पैदल चलने को विवश हो रहे
आठ-आठ सौ किमी की यातनाएं सह रहे
ऐसे कुछ अपवादों से ही देश की गरिमा हो जाती है तार-तार
हे सरकारो कृपया भविष्य के लिए हो जाओ सजग और होशियार।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला, स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून।
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