
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला द्वारा रचित-
Virendra Dev Gaur Chief Editor (NWN)
ऐ भारत मेरे जागो
सदियाँ बीतीं अब जागो
दर्पण ढकने से क्या होगा
हिम्मत कर
दर्पण में झाँको।
जब-जब गऊ माता पर होता है वार
तब-तब हिन्दू संस्कृति की जड़ पर होता प्रहार
भारतीय सभ्यता की होती हार
भारत माता की आत्मा करती चीत्कार।
आठ सदियों की गुलामी ने कर दिया छिन्न-भिन्न
मूल भारतीय संस्कृति हो गई खिन्न
सताएगा कब तक हमें गुलामी का जिन्न
अपनाएं हम हृदय से गऊ संस्कृति अभिन्न।
जिस नेतृत्व ने उठा दिया ऐसा कदम
गऊ संस्कृति विरोधी हो जाएं बेदम
होगा नहीं यह विश्व-विजय से कम
राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाएं
चलो गऊ-माता को हम।
कौन सा भय
कौन सा डर
ऐ नेता-गण तुम्हे सता रहा
आखिर कौन है वह
गलत दिशा जो तुम्हे दिखा रहा।
विश्व गुरु की राह तकते हो
पहला कदम उठाने से डरते हो
अपनी संस्कृति की रक्षा में क्यों
निर्ल्लज हीला-हवाली करते हो।
गोपाल मणि महाराज दधीचि बने
गऊ-संस्कृति रक्षा पर अडिग-अड़े
हिमालय से होंठों पर वंशीधरे
गऊ पीड़ा के सुर दहक रहे
अंधकार-अज्ञान में हम बहक रहे
21वीं सदी में इस दधीचि के सर्वस्व बलिदान पर भी
क्यों हैं हम सब यों पंगु तटस्थ खड़े।
National Warta News