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जोशीमठ केदारनाथ धाम की तरह फिर सँवरेगा

 एम एस चौहान

राज्य सरकार का प्रण है कि विपदाग्रस्त जोशीमठ का केदारनाथ की तर्ज पर उद्धार किया जाएगा। इस समय जोशीमठ विपदा की मार झेल रहा है। इसे प्राकृतिक आपदा नहीं कहा जा सकता है। यह मानव प्रेरित आपदा है। जिसका खामियाजा जोशीमठ के निर्दोष लोगों को उठाना पड़ रहा है। जोशीमठ क्षेत्र के कई गाँव इस विपदा के घेरे में हैं। जोशीमठ उत्तराखण्ड प्रदेश के गढ़वाल मण्डल का एक महत्वपूर्ण उपनगर है। यहीं से बदरीनाथ धाम के लिए सड़क मार्ग से पहुँचा जाता है। यहीं से फूलों की घाटी और हेमकुण्ड के लिए भी वही मार्ग उपयोग में लाया जाता रहा है। जोशीमठ से लगभग 20 किमी के फासले पर गोविन्द घाट स्थित है। यहाँ एक सुप्रसिद्ध गुरूद्वारा विराजमान है। इसी स्थल से आगे जाकर बदरीनाथ धाम पहुँचा जाता है और इसी स्थल से दूसरी दिशा में हेमकुण्ड साहिब विराजमान हैं। हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी का मार्ग एक ही है। इसीलिए जोशीमठ एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी संवेदनशील है। इन क्षेत्रों का सुव्यवस्थित रहना बहुत आवश्यक है। यहीं से नन्दा देवी बायो रिजर्व के लिए भी जाया जाता है। राज्य सरकार ने दोहराया है कि वह जोशीमठ को फिर से दुरूस्त करेगी। यह तो ठीक है लेकिन विकास परियोजनाओं के कारण ये पहाड़ कमजोर तो पड़़ ही रहे हैं। इन पहाड़ों की आन्तरिक बनावट को ध्यान में रख कर ही विकास होना चाहिए। ऐसा विकास जो क्षेत्र में विनाश को दावत दे, उचित नहीं है। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को इन बातों पर बहुत गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। जहाँ तक केदारनाथ धाम के पुनरूद्धार का सवाल है इसके लिए मोदी सरकार साधुवाद की पात्र है। लेकिन, क्या हमारी सरकारों ने उस कारण का समग्र अध्ययन किया। जिसके चलते केदारनाथ धाम में 2013 में भयानक प्रलय आई थी। जिस प्रलय ने दर्जनों लोगों के जीवन को तबाह कर दिया। कई लोग तो हमेशा के लिए लापता हो गए। जोशीमठ और केदारनाथ की प्रलय में बहुत अंतर है। जोशीमठ की प्रलय में हमारा हाथ है जबकि केदारनाथ धाम की प्रलय में प्रकृति के साथ-साथ हमारा भी हाथ था। हमें अभी भी चेतना होगा कि कौन-कौन सी बस्तियाँ और कौन-कौन से धाम ऐसी स्थितियों में हैं जहाँ ऐसी आपदाएं आ सकती हैं। ऐसी आपदाओं के न्यूनीकरण के लिए पहले से ही पूरी तैयारी करनी होगी।


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