-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान
इस बार कुमाऊँ स्थिति जागेश्वर धाम की उत्तराखण्ड पर ऐसी कृपा बरसी कि उत्तराखण्ड को पूरे भारत में सर्वश्रेष्ठ झाँकी प्रस्तुत करने का आशीर्वाद मिला। जागेश्वर धाम की अनूठी भवन कला और प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ जैव विविधता को समेटे यह झाँकी सचमुच भाव विभोर कर देने वाली रही। छोलिया नृत्य की सरगम ने दर्शकों की धड़कनें बढ़ाने का काम किया। ऐसा लग रहा था कि पूरी की पूरी झाँकी विश्वकर्मा ने तैयार की हो। प्राकृतिक छटा, धार्मिक आभा और सांस्कृतिक परिवेश की जो त्रिवेणी इस झाँकी में प्रस्तुत की गयी उसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री एवं सूचना एवं लोक संम्पर्क विभाग के महानिदेशक बंशीधर तिवारी साधुवाद के पात्र हैं। कहते हैं कि मानसखण्ड से प्रेेरित झाँकी का सुझाव मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का था। मानसखण्ड और केदारखण्ड उत्तराखण्ड की दो आँखें हैं। ये दिव्य आँखें उत्तराखण्ड की धार्मिक महिमा और प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ वेदों के समय से चली आ रही सांस्कृतिक पारम्पराओं को अपने अन्दर समाहित किए हुए हैं। उत्तराखण्ड को समझने के लिए कुमाऊँ के मानसखण्ड और गढ़वाल के केदारखण्ड को अच्छी तरह समझना होता है। इस झाँकी में इस बात का बोध झलक रहा था और सांस्कृतिक लावण्य ने झाँकी को दिव्य बना दिया। इस दिव्यता और यथार्थ को जोड़ने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और सूचना विभाग के महानिदेशक की प्रेरणा को श्रेय दिया जाना चाहिए। अन्यथा, इस वर्ष से पहले तो उत्तराखण्ड की झाँकी को प्रथम स्थान कभी नहीं मिल सका। इस बात की पुरजोर चर्चा करना जरूरी है कि पिथौरागढ़ के भीमराम के 16 कलाकारों ने दशकों का मन मोह लिया। ऐसी लयताल और लावण्य प्रस्तुत कर पाना असाधारण काम है। भीमराम जैसे संस्कृतिकर्मी सम्मान के पात्र हैं। उत्तराखण्ड के सौन्दर्य का संयोग और भारतीय योग दोनो मिलकर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसा ही इस झाँकी के मामले में हुआ। झाँकी के ऊपरी भाग में बारू सिंह और अनिल सिंह योग की मुद्रा में बैठे थे। झाँकी का यह स्वरूप झाँकी के महिमा मण्डल को चार चाँद लगा रहा था। पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध जनकवि जनार्दन उप्रेती के योगदान को भी उल्लेखनीय माना जाएगा। उप्रेती जी ने ही झाँकी का ‘‘प्रेरणा गीत’’ तैयार किया था। इस प्रेरणा गीत में उत्तराखण्ड की अटूट एकता और समरसता के दर्शन होते हैं। सौरभ मैठाणी और उनके साथियों ने अपने मीठे स्वरों से एकता के इस संदेश को दिव्य बना दिया। इस प्रेरणा गीत के लेखक देहरादून के निवासी पहाड़ी दगडिया हैं। झाँकी में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क का प्रभाव भी देखा गया। राज्य का राज्य पशु कस्तूरी मृग भी झाँकी पर मौजूद था। देश का राष्ट्रीय पक्षी मोर भी झाँकी पर सुशोभित था। मोर, ऊधमसिंह नगर में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। घुघुती, तीतर, चकोर और मोनाल भी झाँकी में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। देवदार के सुन्दर समूहों के सानिध्य में जागेश्वर धाम का सुशोभित होना राज्य के लिए अच्छा संकेत है। उत्तराखण्ड के सभी धाम देशवासियों के लिए पूजनीय हैं। इस तरह झाँकी में उत्तराखण्ड की समग्रता को समेटने का जो प्रयास किया गया उसके लिए उत्तराखण्ड के सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग को बार-बार साधुवाद। राजपथ को हटाकर कर्तव्य पथ को प्रतिष्ठित करते ही उत्तराखण्ड को पहला पुरस्कार मिलना अतिरिक्त गौरव की बात है।
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