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क्या जोशीमठ त्रासदी किसी बड़े भूकंप की आहट थी

-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान

कुछ रोज पहले लगभग पूरा जोशीमठ कस्बा दरारों की चपेट में आ गया। इस प्राकृतिक दुर्घटना को अलग करके नहीं देखा जा सकता है। अभी तक तो अधिकतर विद्वान यही दावा कर रहे हैं कि जोशीमठ के आधार पर हो रही तोड़फोड़ इसके लिए दोषी है। विकास के लिए ऐसी तोड़फोड़ जरूरी होती है। लेकिन हमें इसी मुद्दे पर नहीं अटकना है। लगभग पूरा उत्तराखण्ड जो पहाड़ का हिस्सा है वह अति संवेदनशील की श्रेणी में आता है। धरती के अन्दर की प्लेटें चलायमान हैं। जगह-जगह फॉल्ट लाईनें हैं। धरती के अन्दर की प्लेटों की गति को रोक पाना मानव के वश में नहीं है। यह कुदरती प्रक्रिया है। इसलिए उत्तराखण्ड के संवेदनशील क्षेत्रों में बहुत संभल कर चलना होगा। विकास का क्या पैमाना हो यह तय करना होगा। ऐसा विकास जो निकट भविष्य में विनाश को दावत देगा उसे त्यागना पड़ेेगा। हमें धरती के अन्दर की बनावट को नहीं भूलना चाहिए। विकास टिकाऊ होना चाहिए। खास कर पहाड़ी इलाकों के लिए बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है। यहाँ तक कि मकानों, दफ्तरों और होटलों के निर्माण में भी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे भवन बनने चाहिएं जो बड़े से बड़े भूकंप में सुरक्षित रह सकें। हालाँकि, जमीन के फटने की स्थिति में तो किसी भी तरह का भवन मटियामेट हो जाएगा। यह दूसरी बात है लेकिन भूकंप की स्थिति में जब दरारें पैदा ना हों तब तो भवनों को सुरक्षित रखा जा सके-ऐसी तकनीकि अपनानी चाहिए। उत्तराखण्ड में कभी भी भूकंप दस्तक दे सकता है। हमें तैयार रहना चाहिए। आपदा प्रबंधन विभाग को भी हर पल तैयार रखना चाहिए। तुर्की का उदाहरण सामने है। भारत में पिछले 50 वर्ष के अन्दर कई बड़े भूकंप कहर बरपा चुके हैं। कुछ साल पहले उत्तरकाशी में भयानक भूकंप कहर बरपा चुका है। गुजरात के भुज में भी कुछ साल पहले भूकंप अपना रौद्ररूप दिखा चुका है। उत्तराखण्ड को कुदरती त्रासदियों से निपटने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। कभी भी कुछ भी हो सकता है। इसमें दो मत नहीं कि जब भारत तुर्की जैसे विरोधी देश की मदद के लिए दौड़ सकता है तो स्वयं की मदद करना कोई मुश्किल काम नहीं। खास बात यह है कि किसी भी तरह का विकास हो-उसमें उचित तकनीकि का प्रयोग हो ताकि भूकंप से होने वाला नुकसान कम से कम कम हो। उत्तराखण्ड में कोई भी भवन कितने मंजिला बन सकता है। यह विचारणीय है।

 


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