-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
उत्तराखण्ड इतिहास रचना चाहता है। मगर वह पल कब आएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वादा किया है कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू होगी। परन्तु मुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव को समय सीमा से नहीं बाँधा। ऐसा क्यों। समय सीमा से बँध जाने पर अनुशासन बना रहता है। देश की जान निकली जा रही है और हम हल्के फुल्के अंदाज में बड़े-बड़े काम कर लेना चाहते हैं। समान नागरिक संहिता राज्य के साथ-साथ देश के लिए बहुत जरूरी है। इसमें किसी तरह की देरी अनावश्यक है। समान नागरिक संहिता तो मौजूदा संविधान की आत्मा है। क्या भारत का संविधान सबको एक नहीं मानता। सबको एक सूत्र में बँधा हुआ नहीं देखना चाहता। संविधान की आत्मा तो यही है कि सब एक हैं और सबका उद्देश्य है देश में समरसता पैदा करना। समान नागरिक संहिता के बिना समरसता संभव नहीं है। कम से कम उत्तराखण्ड ने इस मामले में एक ठोस कदम तो आगे बढ़ाया। लेकिन इस ठोस कदम को समय से बाँधना था। इसमें भला माथा पच्ची की क्या जरूरत। जो देशहित में है वह करने के लिए लेट लतीफी क्यों। देश भक्त उत्तराखण्ड के लोग बेसब्री से कमेटी के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। उत्तराखण्ड को जल्दी से जल्दी समान नागरिक संहिता लागू कर देनी चाहिए। जो भी संवैधानिक कदम उठाने हैं वे उठाए जाने चाहिए। देर नहीं की जानी चाहिएं। उत्तराखण्ड को इतिहास रच देना चाहिए। इतना जरूर है कि जिहादी मानसिकता वाले मुसलमान जो शरियत के ख्वाब देख रहे हैं वे सड़कों पर अवश्य उतरेंगे। वे बवाल मचाएंगे। बवालियों से निपटने के लिए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को पहले से ही पूरी तैयारी रखनी पड़ेगी। अन्यथा, शरियत को संविधान से ऊपर रखने वालों से निपटना मुश्किल हो जाएगा। जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण करने के लिए और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए ऐसे कानून बहुत आवश्यक हैं। उत्तराखण्ड को इतिहास बना कर दूसरे प्रदेशों को प्रेरित करना चाहिए। समान नागरिक संहिता 1950 में ही लागू हो जानी चाहिए थी। बहुत देर हो चुकी है। इसीलिए, आगे और अधिक देर करना घातक है।