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एक स्वर्णिम इतिहास का अंत

mjमसूरी,जिसने 19 वीं सदी के अंत में समूचे पूर्वी एशिया को स्केटिंग जैसा बेहतरीन खेल दिया,आज उसी शहर में इस खेल का कोई कद्रदान न रहा।सीजन की बेइन्तहा भीड है,पर इस हिल स्टेशन में स्केटिंग का शौक फरमाने वाला न एक टूरिस्ट और न एक भी स्थानीय खिलाडी।अभी शाम के वक्त 1990 के मध्य दशक तक पर्यटक और लोकल स्केटिंग खिलाडियों से भरा रहने वाले विशालकाय “द रिंक” हाल में दूर दूर तक सन्नाटा पसरा है,और हाल का कर्मी स्केटर की राह तकते तकते अभी शाम के 7 बजे हाल के गेट पर ताला जड के जा रहा है।सूनी सी सीडियों के पास के बिलियर्ड रूम पर तो कई साल से ताला पडा है।बिलियर्ड भी 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश फौजियों के साथ लंदन और डबलिन से सीधा देश में सबसे पहले मसूरी पहुँचा था।वह 1958 का साल था,जब बचपन में सबसे पहले बेवरली कान्वेट के प्राईमरी छाञ के रूप में अपने स्कूल समूह के साथ मैं द रिकं में पहली बार स्केट पहन कर इसके नार्वेयिन लकडी चमकदार फर्श पर उतरा था।1960 के दशक के दिनों में हमारे माँ-बाप हमें प्रोत्साहित करते थे-“जाओ स्केटिंग खेल में स्पीड व प्रतिस्पर्धा में दूसरे स्केटरों से आगे निकलो।”उन दिनों द रिकं और मालरोड पर स्टेण्डर्ड रिकं(स्टीफल्स हाल) हमारे प्रिय खेल स्थल थे।स्टेण्डर्ड हमारे सामने 1967 में अग्निकाण्ड से स्वाह हुआ और मसूरी की एक भव्य विरासत खत्म हुई।1970 के मध्य दशक में “द रिंक” से मेरी कई मधुर यादे बाबस्ता हैं,नाटकों में रोल प्ले से लेकर कालेज दिनों में अपनी प्रियत्तमा की प्रतिक्षा तक।मुझे याद है 1975 में रेडियो नाटक “अण्डर सेकेट्री” के बूराराम रोल के लिए मुझे मसूरी शरदोत्सव समिति ने उस साल का “बेस्ट एक्टर आफ मसूरी”चुना था।शुरू में पूर्वी एशिया के सबसे बडे स्केटिगं हाल/प्रेक्षाग्रह “द रिंक” का स्वामी शिकारी विल्सन का बडा बेटा था,जिसने इस खेल में पहाड के अनेकों नौजवानों को ख्याति दिलायी।मसूरी में स्केटिंग जैसी खेल विधा को पैदा करने वाले शहर से इस खेल का अंत होना दुखदायी है।कभी वार्सिलोना ओलम्पिक की रोलर हाकी के चीफ रैफरी स्व• नन्दकिशोर भम्बू और अनेक देश-विदेश के ख्यातिप्राप्त स्केटर इसी हाल के फर्श से ऊंचाई पर पहुँचे थे।वैसे ये क्रिकेट के अलावा सभी भव्य खेलों के अंत का अजीब दौर है।अब मसूरी सीजन में शेयर और ताश के बडे खिलाडी आते हैं-जो जिम में जाकर अपनी मोटी तौन्द कमतर करने की असफल कोशिश करते हैं और उनके थुलथुले बच्चे वीडियो गैम्स की दुकानों पर युद्ध के कृञिम सीन पर फुदकते दिखते हैं/वाकई जमाना बडा ऊटपटांग हो चला है ?   

                                                                                                           जयप्रकाश उत्तराखण्डी 
                                                                                                               (हिस्टोरियन)

                                                                                                                                       

                                                                                                                                                         

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7 comments

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