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बिहार में जंगल राज का उदय

-नेशनल वार्ता ब्यूरो-

बिहार में नई सरकार के बनते ही चौबीस घंटे के अन्दर एक पत्रकार की हत्या हो गई। एक मंदिर के पुजारी की हत्या हो गई और एक गाड़ियों के शोरूम में सुबह के समय डकैती पड़ गई। सोचिए, भाजपा वाली सरकार के जाते ही असामाजिक तत्वों ने अपना फन उठाना शुरू कर दिया। यही है जंगल राज की शुरूआत। यही नहीं कुछ लोगों ने मुजफ्फरपुर में तिरंगे का भी अपमान किया। बताया जा रहा है कि तिरंगे के इस घोर अपमान में एक जनप्रतिनिधि शामिल है जिसे पुलिस बचाने की कोशिश कर रही है। पुलिस सत्ता के तेवर के हिसाब से काम करती है। पुलिस को पता है कि बिहार की नई सत्ता खुद को सेक्युलर कहती है। सेक्युलर सत्ता वाले केवल अपनी कुर्सी की चिंता करते हैं। उन्हें देश के वर्तमान और भविष्य से कोई लेना देना नहीं। वे इतना ज्यादा सोचने की स्थिति में ही नहीं हैं। क्योंकि इनकी सोच बहुत छोटी और संकीर्ण है। ठीक उसी तरह जैसे कि कुँए के मेढक को लगता है कि कुँए के ऊपर का आसमान ही पूरा आसमान है। हम आजादी का अमृत महोत्सव अवश्य मना रहे हैं लेकिन हमारे देश के वातावरण में अमृत जैसा कुछ भी नहीं है। ऐसे में अमृत महोत्सव मनाने का औचित्य भी बहस के दायरे में आ सकता है। अमृत का अर्थ होता है स्वस्थ वातावरण। राजनीति वाले वातावरण को अस्वस्थ बनाने में लगे हैं। हो सकता है मोदी जी इस अस्वस्थ वातावरण को धीरे-धीरे स्वस्थ कर दें परन्तु इसके आसार कम ही हैं। उत्तर प्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री कह रहा है कि भाजपा की तिरंगा यात्रा दंगा कराएगी। इस पूर्व यूवा मुख्यमंत्री को इस संसार में केवल भाजपा में ही कमियाँ नजर आती हैं और भाजपा के अलावा हिन्दू समाज में भी इस आदमी को कमियाँ नजर आती हैं। बाकी इस आदमी के लिए सब कुछ अमृत है। इस संसार में उथल पुथल की वजह भाजपा और हिन्दू ही हैं। ऐसे राजनेताओं के रहते जयचन्द की याद आना स्वाभाविक है। भारत से जयचन्द सम्प्रदाय का अंत कब होगा। हमारा सबसे बड़ा यह जयचन्द सम्प्रदाय ही है।

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