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सागर गिरी आश्रम हिन्दू सनातन संस्कृति का केन्द्र

-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान

सागर गिरी आश्रम धीरे-धीरे सनातन हिन्दू संस्कृति का केन्द्र बनता जा रहा है। कुछ माह पहले तक सागर गिरी आश्रम सुसुप्तावस्था में था। अर्थात् सागर गिरी आश्रम सोया हुआ था। अब यह आश्रम जागृत अवस्था में है। तेगबहादुर मार्ग स्थित इस आश्रम के आसपास लोगों को अब यह अनुभव हो रहा है कि आश्रम का क्या अर्थ होता है। हालाँकि, कुछ राक्षसी प्रवृत्ति के लोग सागर गिरी आश्रम के पुनरूद्धार से आकुल-व्याकुल हो रहे हैं। इन राक्षसी शक्तियों को सागर गिरी आश्रम की धार्मिक और अध्यात्मिक गतिविधियों से परेशानी हो रही है। इसीलिए, कभी इस आश्रम से गैस का चूल्हा गायब हो जाता है। कभी चटाई गायब हो जाती है तो कभी दानपात्र ही चुरा लिया जाता है। ये शक्तियाँ जूना अखाड़ा के महान संत सागर गिरी महाराज और चूड़ामणि महाराज की धरोहर को नष्ट कर देना चाहतीं हैं। ये दोनों संत अब ब्रह्मलीन हैं लेकिन सागर गिरी महाराज की इस तपस्थली में उनका आसन अभी भी विराजमान है। इसी आसन पर बैठ कर वे योगासन करते थे और घंटो अध्यात्म की दुनिया में चले जाते थे। उनके हाथ की धूनी में औषधि के गुण थे। वे सौ प्रतिशत सन्यासी थे और परोपकार में तल्लीन रहते थे। जो भी उनके पास आता था वह अपनी समस्या का समाधान पा जाता था। उनके बाद चूड़ामणि महाराज ने आश्रम का संचालन किया था। वे भी उच्च कोटि के संत थे। अब वर्तमान में एक संत का पदार्पण हुआ है जो इस आश्रम की महान परम्पराओं को जीवित रखना चाहते हैं। इस पुण्य भूमि को बचाना चाहते हैं। इस तपस्थली को लोक कल्याण के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं। यही इनका स्वार्थ है। ऐसे स्वार्थ को परमार्थ कहते हैं। इन पूज्य संत का नाम है अनुपमानंद गिरी महाराज। अनुपमानंद गिरी महाराज कड़वा पानी स्थित हरिओम आश्रम के महंत हैं जहाँ सैकड़ों गौ माताओं की सेवा की जा रही है। ऐसे बच्चे जो आर्थिक तंगी का शिकार होते हैं और जो ठिकाने की चाह में होते हैं उन्हें यह आश्रम अपनी छत्रछाया में ले लेता है। अनुपमानंद गिरी महाराज भी जूना अखाड़ा के संत हैं। पिछले कुछ महीनों से इन्होंने अपनी लगन और तपस्या स्वभाव के रहते सागर गिरी आश्रम को प्रेरणा स्थल में बदल दिया है। अब यह आश्रम श्रद्धालुओं के लिए पुनः प्रेरणा स्थली बनता जा रहा है। अनुपमानंद गिरी महाराज सनातन हिन्दू संस्कृति के तमाम आयामों से श्रद्धालुओं को परिचित करवा रहे हैं। श्री तुलसी की शादी हो या फिर देहरादून के चार सिद्ध धामों का महत्व हो, ऐसे अध्यात्मिक क्रिया कलापों से लोगों को जागृत कर रहे हैं। जन्म दिवस कैसे मनाया जाए और मंदिरों की इसमें क्या भूमिका हो सकती है, यह भी लोगोें को बता रहे हैं। मंदिरों का सनातन हिन्दू संस्कृति में सर्वोच्च स्थान रहा है। कभी हमारे मंदिर पूजा स्थल के साथ-साथ संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र भी होते थे। हमारे मंदिर सामाजिक गतिविधियों के केन्द्र में होते थे। यहीं से सभी क्रिया कलाप संचालित होते थे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारे मंदिर हमारी आत्मा थे। अनुपमानंद गिरी महाराज इसी सच्चाई का अनुभव करा रहे हैं। सभी संतों को यही करना चाहिए। सल्तनत के सुल्तानों और मुगलों ने इसीलिए तो हमारे मंदिरों को नष्ट किया था। वहीं से हमारे छिन्न-भिन्न होने की शुरूआत हुई थी। अंग्रेजों ने इस हालात को बरकरार रखा ताकि हिन्दुओं को बाँट कर हम पर राज किया जा सके। आज आवश्यकता है कि हमारे संत इस ऐतिहासिक क्रूर सत्य से भी हमारा परिचय कराएं। ऐसा नहीं होगा तो कुछ ही वर्षों में सनातन संस्कृति का लोप हो जाएगा और संसार में अंधेरा छा जाएगा। अर्थात् वे असुर जो पाँच बार अपने पूजा स्थलों पर जाने का दावा करते हैं वे पूरे संसार पर हावी हो जाएंगे। वे इसी जुनून में दिन रात जुटे हुए हैं। लंबे-लंबे पुल, अच्छी-अच्छी सड़कें, ऊँची- ऊँची इमारतें सभी की मुंडेर पर काले और हरे झण्डे गाड़ दिए जाएंगे। इन झण्डों पर या तो चाँद सितारे दिखाई देंगे या फिर अरबी में लिखे हुए नारे। इसीलिए, हम सागर गिरी महाराज आश्रम में धार्मिक और अध्यात्मिक गतिविधियों के संचालनकर्ता अनुपमानंद गिरी महाराज और व्यास शिवोहम बाबा से आशा करते हैं कि वे इसी तरह इस आश्रम में ऐसी गतिविधियों को संचालित करते रहें और इस आश्रम की सुरक्षा को सुनिश्चित करें। यह आश्रम आसपास के हजारों लोगों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है और श्रद्धा का केन्द्र बना रहना चाहिए।

 

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