बिरजू महाराज के घुंघरू आत्मा में परमात्मा का साक्षात्कार करा देते थे
अवतरण दिवस पर पुष्पांजलि (4 feb 1938- 17 jan 2022)
-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
बिरजू महाराज की संगीतमय आत्मा ने मानव शिशु के रूप में 4 फरवरी 1938 के दिन उत्तर प्रदेश की मौजूदा राजधानी लखनऊ में अवतरण किया था। इन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय नर्तक शास्त्र में महारथ हासिल किया। महाराज जी 1951 से सक्रिय होकर अपनी कला से संसार के संगीत प्रेमियों को लगातार मंत्रमुग्ध करते रहे। आज भी उनके घुंघरू मन के गलियारों में छनकते रहते हैं। महाराज लखनऊ कालिका बिंदादिन घराने के मशहूर नर्तक रहे हैं। वे सुप्रसिद्ध नर्तकों के ‘‘महाराज परिवार’’ के वंशज रहे हैं। माधुरी दीक्षित ने इन्ही बिरजू महाराज से संगीत की शिक्षा ली। माधुरी दीक्षित के समर्पण भाव से बिरजू महाराज खासा प्रभावित रहे। कहा जा सकता है कि माधुरी दीक्षित उनकी मन पसन्द शिष्या रही हैं। फिल्म ‘देवदास’ के गीत ‘‘काहे छेड़-छेड़ मोहे………’’ को बिरजू महाराज ने अपने संगीत में पिरोया था। माधुरी दीक्षित भी महाराज की प्रशंसा करते नहीं थकतीं। वे अकसर कहती हैं कि बिरजू महाराज इतना उच्च संगीत का ज्ञान रखते हुए भी एक मासूम बच्चे की तरह पेश आते थे। दोस्त की तरह व्यवहार करते थे और कमी को सुधारने में पीछे नहीं रहते थे। उनके जैसा महान संगीतज्ञ कभी-कभार ही नसीब होता है। माधुरी दीक्षित के अलावा बिरजू महाराज के कई शिष्य फिल्मों के साथ-साथ टीवी सीरियल की दुनिया में अपना-अपना जलवा बिखेर रहे हैं। उनके शिष्यों की कतार खासा लम्बी है। आम दर्शक भी उनकी मानव सुलभ मासूम (innocent) अदाओं के कायल हैं। कत्थक नृत्य के साथ-साथ गायकी में भी वे बेजोड़ रहे हैं। उन्होंने संसार के लगभग हर कोने को अपने नृत्य और गायन से प्रभावित किया है। सैकड़ों कार्यशालाएं आयोजित कर उन्होंने शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार किया है। वे अपने चाचा शम्भु महाराज के साथ नई दिल्ली के भारतीय कला केन्द्र में कार्यरत रहे। इस कला केन्द्र को कत्थक केन्द्र भी कहा जाता है। 1998 में यहाँ से सेवामुक्त होने के बाद महाराज ने अपना नृत्य विद्यालय ‘कलाश्रम’ नाम से चलाया । इनका तो जन्म ही कत्थक नृत्य घराने में हुआ था। इस घराने के नर्तक रायगढ़ रजवाड़े के दरबारी नर्तक रहे हैं। इनका नाम पहले दुखहरण रखा गया था। वह इसलिए क्योंकि जिस दिन ये एक अस्पताल में पैदा हुए थे। उस अस्पताल में इनके अलावा हर बच्चे ने कन्या के रूप में जन्म लिया था। इसी आधार पर इनका नाम बृजमोहन कर दिया गया। यही नाम आगे चलकर बिरजू हो गया। इनके चाचाओं लच्छू महाराज और शम्भु महाराज ने इन्हें प्रशिक्षित किया। केवल सात वर्ष की आयु में इन्होंने गायन कला का अनूठा परिचय देकर ‘‘होनहार वीरवान के होत चीकने पात’’ की कहावत को चरितार्थ कर दिया था। जब ये 9 वर्ष के थे तभी इनके पिता परलोकवासी हो गए। 13 वर्ष की आयु में ही महाराज ने दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना शुरू कर दिया था। देवदास फिल्म के अलावा महाराज ने उमराव जान, बाजीराव मस्तानी और इश्किियाँ जैसी फिल्मों में कत्थक नृत्य की अमिट छाप छोड़ी है। महाराज को 2002 में लता मंगेशकर पुरस्कार, 2012 में सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन के लिए पुरस्कार के साथ-साथ भरतमुनि सम्मान से विभूषित किया गया। बिरजू महाराज के प्रशंसकों की संख्या अपार है ठीक उनके अपार संगीत सागर की गहराई जैसी। बिरजू महाराज 17 जनवरी 2022 के दिन स्वर्गारोहण पर निकल पड़े।
-सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून ।