थराली (नेशनल वार्ता ब्यूरो)। एक जनपद एक उत्पाद की नीति भारत जैसे देश के लिए बहुत लाभप्रद मानी जा रही है। क्योंकि यह देश आज भी कृषि प्रधान ही है। यह नीति अगर सही तरीके से लागू की जाए तो देश का कायाकल्प हो सकता है। उत्तराखण्ड के लिए भी यह नीति कारगर सिद्ध हो सकती है। जमीन पर केन्द्र सरकार की यह नीति उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में पड़ताल का एक विषय रही है। पिण्डर घाटी बेहद संवेदशील घाटियों में शामिल है। थराली इलाके मंे विकास की संभावनाएं भरपूर मानी जाती रहीं हैं। यहाँ कई तरीके की परम्परागत फसले दशकों तक लोगों की जीविका का आधार रही हैं। किन्तु इन स्थानीय फसलों के विकास को लेकर कोई खाका अभी तक सामने नहीं आया है। इस नाते स्थानीय आबादी पर बुरा असर पड़ रहा है और अधिकतर लोग पलायन को विवश हो रहे हैं।
थराली क्षेत्र में कुलसारी के प्याजों की क्षेत्र में व्यापक माँग रही है। किन्तु, इस फसल पर भी विपदा का साया मँड़रा रहा है। सोलपट्टी में अच्छी किस्म के आलू पैदा किये जाते रहे है किन्तु इसकी फसल पर विपरीत असर देखे जा रहे हैं। स्थानीय लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जंगली जानवर उनकी फसलों को नष्ट कर रहे हैं। जंगली जानवरों को खेतों से दूर रखने का कोई उपाय लोगों के पास नहीं है। बंदर, लंगूर, जंगली सुअर और हिरणों की कुछ प्रजातियां इन फसलों को बरबाद कर देते हैं। जिसके चलते आलू और प्याज उत्पादक लाचार होकर रोजगार के विकल्पों की तलाश में देहरादून और दिल्ली की ओर पलायन कर रहे हैं।
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