-नेशनल वार्ता ब्यूरो-
गायक नरेन्द्र नेगी को हटाकर मौजूदा गढ़वाल की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। नेगी जी ने गढ़वाल की रग-रग को अपने गले के कमाल से संगीत में पिरोया है। लगभग तीन पीढ़ियों ने इनके गानों को सुनकर अपना जीवन बिताया है। इनके गानों में पहाड़ के नदी नालों और झरनों के साथ-साथ पशु-पक्षियों और चिड़ियों के जीवन की लय-ताल समाई हुई है। गढ़वाल के परिवेश की इनके गानों में आत्मा समाई हुई है। इसमें दो मत नहीं कि नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गानों से पहाड़ की तीन पीढ़ियों को प्रभावित किया। समय-समय पर इनके कुछ गाने चर्चा में आते रहे हैं लेकिन कर्मठता के धनी नेगी जी लगातार गानों के दुनिया में छाए रहे हैं। नेगी जी एक महान लोक गायक के साथ-साथ लेखक भी है। उनकी अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी पुस्तकों में गढ़वाल की सांस्कृतिक-आर्थिक धरोहर गुनगुनाती प्रतीत होती है। नेगी जी गायक के साथ-साथ विशुद्ध रूप से एक महान संस्कृतिकर्मी भी है। इसीलिए नेगी जी गढ़वाल के पर्याय माने जाने लगे हैं। उनके गीतों की धूम गढ़वाली एल्बमों छुंयाल, दग्ड़या, घस्यारि, हल्दी हाथ, जय धारी देवी, बसंत ऐगे, माया को मुंण्डारो, नौछमी नरैणा, रूमुक, सलाण्या स्याली, जै भोले भंडारी, तुमारी माया मा सहित कई अन्य एल्बमों में मौजूद है। इनके कई गीत गढ़वाली फिल्मों में भी दर्शकों को लुभाते रहे हैं। नेगी जी को उत्तराखण्ड की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी पहली एल्बम का नाम बुराँस है। बुराँस उत्तराखण्ड की घाटियों में खिलने वाला एक बहुत सुंदर पुष्प होता है। लखनऊ आकाश वाणी के सर्वाधिक लोकप्रिय कलाकारों में नेगी जी का नाम सबसे ऊपर आता है। इन्होंने यूएसए, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड सहित कई मुस्लिम देशों में जाकर भी अपनी गायकी से लोगों को मंत्रमुग्ध किया है। गढ़वाली ही नहीं नेगी जी कुमाऊँ के लागों के भी पसंदीदा गायक है। ये संस्कृति की दुनिया के सागर है जिन्हें शब्दों में पिरो पाना बहुत मुश्किल है। -सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार,देहरादून।
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