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बालिकाओं के शिक्षा और गरिमा के अधिकार की सुरक्षा

-स्कूल जाती लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ को अपराध घोषित करने का संवैधानिक आधार
रजनीश शर्मा

भारत की लाखों बच्चियाँ रोज़ किताबें लेकर स्कूल या ट्यूशन जाती हैं। लेकिन उनके बैग के साथ एक और बोझ होता है — डर का बोझ। रास्ते में stalking (पीछा करना), dupatta-pulling (दुपट्टा खींचना), blackmail और शारीरिक छेड़छाड़ जैसी घटनाएँ आम हो गई हैं। यह एक छुपी हुई महामारी है।

इसके कारण हज़ारों बच्चियाँ स्कूल छोड़ रही हैं। परिवार मजबूरी में कम उम्र में उनकी शादी कर देते हैं। और कई बार, बच्चियाँ दुखद रूप से अपनी जान तक ले लेती हैं।

यह केवल law and order का मामला नहीं है। यह संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है —

  • Article 21A – Right to Education: हर बच्चे को 6 से 14 वर्ष तक नि:शुल्क शिक्षा।

  • Article 21 – Right to Life with Dignity: गरिमा और सुरक्षित जीवन का अधिकार।

जब किसी लड़की को रोज़ छेड़छाड़ सहकर स्कूल छोड़ना पड़ता है, तो यह दोनों अधिकारों का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने Mohini Jain (1992) और Unni Krishnan (1993) जैसे मामलों में साफ़ कहा है कि शिक्षा का अधिकार संविधान से जुड़ा हुआ है।

इसलिए ऐसी छेड़छाड़ केवल “eve-teasing” नहीं है — यह संविधान की सीधी अवमानना है।

पूरे देश की तस्वीर

यह समस्या केवल उत्तर प्रदेश की नहीं है। हालाँकि अंबेडकर नगर, रायबरेली, अमरोहा और लखनऊ जैसे जिलों में कई दुखद घटनाएँ हुई हैं, लेकिन देशभर से उदाहरण मिलते हैं:

  • विदिशा, मध्य प्रदेश: 17 साल की लड़की ने रोज़ाना की छेड़छाड़ से परेशान होकर ज़हर खा लिया।

  • पटना, बिहार: माता-पिता ने लड़कियों को स्कूल भेजना बंद कर दिया क्योंकि कक्षा के बाहर उन्हें बार-बार छेड़ा जाता था।

  • रोहतक, हरियाणा: दसवीं की छात्रा पर रोज़ स्कूल जाते समय बाइक सवार युवकों ने हमला किया।

  • चेन्नई, तमिलनाडु: एक auto driver ने स्कूल ले जाते समय लड़कियों को छेड़ा और वीडियो बनाया।

यह दिखाता है कि घर से स्कूल तक की राह लड़कियों के लिए असुरक्षित है। और जब तक सुरक्षा नहीं मिलेगी, शिक्षा अधूरी रह जाएगी।

कानून की कमी

Bhartiya Nyay Samhita (BNS) 2023 में stalking, molestation और sexual assault जैसे अपराध दर्ज हैं। लेकिन इसमें कुछ बड़ी कमियाँ हैं:

  • स्कूल छोड़ने या आत्महत्या तक पहुँचाने वाली छेड़छाड़ के लिए कोई विशेष अपराध श्रेणी नहीं है।

  • सज़ा दर बहुत कम है (30% से भी नीचे)।

  • कानून इन्हें व्यक्तिगत गलतियाँ मानता है, जबकि असल में यह शिक्षा और समानता में बाधा हैं।

क्या बदलाव ज़रूरी हैं?

  1. कानून में सुधार

    • BNS में नई धारा जोड़नी चाहिए: स्कूल जाती लड़कियों को छेड़ना या पीछा करना aggravated offence हो।

    • इसकी सज़ा 5 से 10 साल तक की जेल हो।

    • यह अपराध cognizable और non-bailable हो तथा fast-track courts में इसकी सुनवाई हो।

  2. पुलिस और प्रशासन की ज़िम्मेदारी

    • हर शिकायत पर FIR दर्ज हो।

    • लापरवाह पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हो।

    • ज़िले स्तर पर school safety audits हों।

  3. लड़कियों की सुरक्षा और मदद

    • परामर्श (counselling), आर्थिक सहायता और फिर से स्कूल में दाखिले की व्यवस्था।

    • POCSO कानून में संशोधन कर रास्ते में होने वाली छेड़छाड़ को भी शामिल किया जाए।

    • Safe corridors — CCTV, रोशनी और सुरक्षित जगहें।

  4. रोकथाम की व्यवस्था

    • स्कूल वाहनों में GPS और महिला परिचारक अनिवार्य हों।

    • हेल्पलाइन और मोबाइल ऐप्स से तुरंत शिकायत दर्ज हो सके।

    • Self-defence और कानूनी जानकारी को स्कूल की पढ़ाई का हिस्सा बनाया जाए।

संसद की भूमिका क्यों ज़रूरी है?

यह संकट मामूली नहीं है। अगर लड़कियाँ छेड़छाड़ के कारण स्कूल छोड़ रही हैं, तो यह संविधान के Fundamental Rights और Directive Principles दोनों का उल्लंघन है। यह उन्हें गरीबी और निर्भरता की ज़िंदगी में धकेल देता है।

अगर संसद इसे शिक्षा और गरिमा के खिलाफ़ गंभीर अपराध घोषित नहीं करेगी, तो राज्य अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असफल होगा।

हमें क्या करना होगा

Right to Education केवल स्कूल के गेट तक सीमित नहीं है। यह सड़कों, बसों और गलियों तक होना चाहिए। अगर हम सचमुच हर लड़की की शिक्षा की रक्षा करना चाहते हैं, तो स्कूल जाते समय छेड़छाड़ को विशेष अपराध मानकर तुरंत कार्रवाई करनी होगी।

यह सिर्फ़ criminal law reform नहीं है। यह संविधान के प्रति सच्चाई है। लड़कियों के शिक्षा और गरिमा के अधिकार की रक्षा करना ही गणराज्य की रक्षा करना है।

रजनीश शर्मा लेखक और पुरस्कार-विजेता संपादक हैं। उनसे संपर्क किया जा सकता है: rshar121920@gmail.com