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नशे में फँसा उत्तराखण्ड

-वीरेन्द्र देव गौड़ एवं एम एस चौहान

उत्तराखण्ड जानलेवा नशे की गिरफ्त में है। उत्तराखण्ड की पुलिस कह तो रही है कि राज्य से नशे का शिकंजे को छिन्न-भिन्न कर दिया जाएगा। लेकिन नशे का व्यापार युवा पीढ़ी को अपने चपेटे में ले चुका है। देहरादून में तो स्थिति नियंत्रण से बाहर लग रही है। अगर पुलिस वाकई इस मोर्चे पर मेहनत कर रही है तो पुलिस के पास सूचनाएं क्यों नहीं हैं? अगर पुलिस के पास सूचनाएं होतीं तो नौजवानों में नशे का चलन इतनी तेजी से कैसे फैल पाता? पुलिस को सलाह है कि घनी आबादी वाले गली मोहल्लों में अपने मुखबिर तैनात करें। अन्यथा, युवा पीढ़ी नशेड़ी होकर तबाह हो जाएगी। नशे के इस धंधे में ऐसे लोग तो हैं ही जो आदतन देशद्रोही होते हैं। ऐसे लोग भी इस धंधे में जो मूल रूप से अपराधी नहीं होते। युवा पीढ़ी को बचाने के लिए आम लोगों को भी पुलिस का साथ देना होगा। लेकिन यह अभियान तभी सफल होगा जब पुलिस नशे के धंधे से कमाई करना छोड़ दे। नौजवानों में रातोरात धनवान होने की धुन सवार है। ऐसे नौजवान भी इस धंधे में उतर रह हैं। एक बार इस धंधे में जो उतर गया फिर उसका बेड़ा पार होना असंभव होता है। कई हत्याएं तो नशेड़ियों के आपसी झगड़ों का नतीजा होती हैं। यदि पुलिस ने इस मामले में साफगोई नहीं दिखाई। अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया तो आने वाले समय में स्थितियाँ बेकाबू हो जाएंगी। ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे पावन तीर्थ स्थलों में भी नशे का धंधा फलफूल रहा है। क्या ऐसी स्थिति में पर्यटन और धर्माटन का विकास हो पाएगा। इनका विकास हो या ना हो राष्ट्र का विनाश हो जाएगा। उत्तराखण्ड के डीजीपी को चाहिए कि वे ईमानदार और निडर पुलिस वालों की टीमें तैयार कर इस धंधे पर ताबड़तोड़ हमला करें। ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले समय में उत्तराखण्ड जैसे राज्य में अपराध का ग्राफ ऊँचा होगा और राज्य तबाही की कगार पर जा पहुँचेगा।

 


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