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बीज खेतों मे बोने की बजाए घर में बन रहा है खाना

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देहरादून (संवाददाता)। एक कहावत है, ‘जैसा बोओगे वैसा काटोगे। पर अगर कोई बोएगा ही नहीं, तो काटेगा क्या। जी हां ! कुछ ऐसा ही आलम है उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र के किसानों का। सरकार फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध करवा रही है, लेकिन किसान बोने के बजाय बीजों का इस्तेमाल भोजन के रूप में कर रहे हैं। ऐसे में खेत बंजर होते जा रहे हैं और किसान खस्ताहाल। पहाड़ी इलाके में खेती आसान नहीं है। यहां की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण खेतीबाड़ी काश्तकार के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। यही वजह है कि लोग कृषि कार्य से विमुख हो रहे हैं। पहाड़ों से पलायन की यह बड़ी वजह है। सरकार चाहती है कि कृषि को प्रोत्साहित किया जाए, ताकि गांव फिर से आबाद हों। तमाम प्रोत्साहन योजनाओं के तहत सरकार किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध करवा रही है। मकसद यह है कि काश्तकारों की पैदावार दोगुनी हो सके। कृषि विभाग के जरिए यह बीज मुफ्त या सब्सिडी के तहत किसानों को बांटा जा रहा है। इन बीजों में धान, गेहूं, दाल (तोर और उड़द), अदरक आदि शामिल हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि कई किसान सब्सिडी के तहत मिल रहे इन बीजों का भोजन के रूप में उपयोग कर रहे हैं। लिहाजा, सरकार अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रही है। सब्सिडी के बीज ही नहीं, कृषि उपकरणों की भी सौदेबाजी धड़ल्ले से हो रही है। सरकार बीपीएल और एससी/एसटी वर्ग के किसानों को मुफ्त में कृषि उपकरण मुहैया करवा रही है। इनमें से कई किसान इन उपकरणों को बड़े किसानों को बेच रहे हैं। कृषि विभाग के कार्यालयों तक यह शिकायतें पहुंच रही हैं। फिर भी विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। ‘यदि ऐसी शिकायतें विभाग को मिल रही हैं, तो इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। मैं अपने स्तर से इस मामले की जानकारी लूंगा। सरकार की योजनाओं का दुरुपयोग न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।


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