देहरादून (शिवोम) – बलवन्त सिंह नेगी जी एक बहुमुखीय प्रतिभा के व अपनी ही तरह की स्वतन्त्र सोच के व्यक्ति थे। बलवन्त सिंह नेगी जी का जन्म चमोली जनपद, उत्तराखण्ड में हुआ। वह बचपन से ही एक अलग सोच के साथ जीवन को देखते व जीते थे एवं अपने अलग व्यक्तित्व के कारण अपनी शैक्षणिक पढ़ाई के दौरान वह अपने घर से निकल गये तथा बंगाल पुलिस में भर्ती हुए और अपनी सेवायें देने लगे तथा समाज के प्रति अपने दायित्वों का समझते थे व एक सुलझे हुए शांत प्रकृति के व्यक्तित्व थे। बंगाल पुलिस में सेवारत रहते हुए उन्होंने अपने शान्त व सौम्य स्वभाव के चलते पुलिस सेवा में पुलिस का व्यवहार समाज के साथ सामंजस्य व न्यायपूर्ण रहे इसके लिए वह सदैव ही सजक व प्रयासरत रहे तथा पुलिस सेवा में रहते हुए उन्होंने पुलिस सेवा के दौरान पुलिस की परेशानी व अत्यधिक दबाव में कार्य करने के कारण को समझते हुए पुलिस की एक यूनियन बनायी तथा पुलिस सेवा में जवानों की पुलिस यूनियन के माध्यम से मदद को सदैव ही प्रयासरत रहे परन्तु वह अपने बंगाल पुलिस में कार्यकाल के दौरान स्वयं को संतुष्ट ना पाकर बंगाल पुलिस से स्वैच्छा सेवानिवृत्ति लेकर रानीपोखरी, ऋषिकेश, जिला देहरादून क्षेत्र में निवास करने लगे। इस दौरान उन्होंने होम्योपैथी चिकित्सा में भी अपना योगदान दिया तथा एक स्थापित होम्योपैथी चिकित्सक के रूप में सेवायें दी यहीं नहीं उनके द्वारा इलैक्ट्रो होम्योपैथी को बढ़ावा देने हेतु इलैक्ट्रो होम्योपैथी पर भी सफलतम प्रयास किया गया। बलवन्त सिंह नेगी द्वारा अपने समाज के प्रति दायित्व को समझते हुए, सांई मन्दिर, डाण्डी, रानीपोखरी, जिला देहरादून में भी निःशुल्क शिविर लगा कर होम्योपैथी दवाओं के माध्यम से लोगों का उपचार किया तथा अपनी निःशुल्क सेवायें दी। उनमें आला दर्जे का सेवा भाव था, उनके द्वारा कुछ बांग्ला भाषी उपन्यास/पुस्तक/कवितायें भी लिखी गयी तथा साप्ताहिक एवं पाक्षिक समाचार पत्रों का उनके द्वारा सफलता से संचालन किया गया तथा वर्तमान समय में ‘‘पिण्डर मेल’’ हिन्दी पाक्षिक समाचार पत्र में सम्पादक के रूप में अपने सम्पादकीय से हमेशा सभी को प्रभावित किया तथा वह निरन्तर एक स्वच्छ व स्वस्थ सोच के साथ जीवन को देखते व जीते थे। उनका जैसा व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन मौजूदा समय में बहुत ही कम देखने को मिलता है। बलवन्त सिंह नेगी अब हमारे बीच में नहीं रहे जो कि अत्यधिक दुःख एवं पीड़ा का विषय है तथा समाज के प्रति उनका व्यवहार, सोच एवं शान्त व ईमानदार छवि तथा अपने बहुमुखीय व्यक्तित्व के कारण उन्हें हमेशा याद किया जायेगा। उनका हमारे बीच में ना होना एक अपूर्णीय क्षति है जो कि सदैव ही हमें खलेगी। उपयुक्त हैः-
कि हम जिये शर्तें अपनी ही,
कि पोखरों को नहरों का रूप दे दिया,
कि हाँ हर कदम एक नई सोच था,
और जब चले, रास्तों को खूबसूरत नाम दे दिया,
अब सितारों ने भी हाथ थामा, जब कि अलविदा,
हाँ आसमाँ को खूबसूरत रंग दे दिया।