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गौमुख से विमुख नहीं रह सकते हम

 सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव)
भारत की पहचान गंगा से है। गंगा को शास्त्रों में सुरसरी कहकर भी पुकारा गया है। गंगा भागीरथी और अलकनन्दा के संयोग से देवप्रयाग में गंगा बनती है। देवप्रयाग का लगभग 80 प्रतिशत भाग टिहरी गढ़वाल जबकि लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा पौड़ी गढ़वाल में आता है। देवप्रयाग को प्रयाग का दर्जा हासिल है। यहाँ श्रीराम का एक मात्र मन्दिर भी मौजूद है। गौमुख से निकलकर भागीरथी देवप्रयाग में पहुँच कर बदरीनाथ क्षेत्र से आ रही अलकनन्दा में मिलकर बनती है गंगा। यही गंगा, गंगा सागर में बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। गौमुख उत्तराखण्ड का बहुत संवेदनशील हिमनद (glacier) है। गौमुख पर जलवायु परिवर्तन की मार पड़ने की खबरें लगातार आती रहती हैं। यही हिमनद भागीरथी का जन्मदाता है। इसमें दो राय नहीं कि इस हिमनद का आकार धीरे-धीरे ही सही लेकिन सिकुड़ता (shrinking year by year) जा रहा है। कोई चमत्कार ही इस घटते हिमनद को बचा सकता है। संसार के तापमान में वृद्धि ( rise in global temperature) वैसे तो पूरे संसार के लिए खतरे का संकेत है परन्तु हमें इस हिमनद के गिरते स्वास्थ्य की चिंता करनी पड़ेगी। कोई न कोई विकल्प तो पर्यावरणविदों को तलाशना ही पड़ेगा। गंगा का अस्तित्व गौमुख हिमनद पर निर्भर करता है। टिहरी डैम में इसी नदी का जल जमा है। गंगा उत्तर भारत का प्राण है। भारत को भारत के भविष्य के लिए गंगा की चिंता करनी पड़ेगी। गौमुख से लेकर टिहरी बाँध तक और टिहरी बाँध से लेकर ऋषिकेश और हरिद्वार तक वृक्षारोपण के उपाय को तरजीह ( genuine alternative) देनी पड़ेगी। पहाड़ की आबोहवा के हिसाब से पौधारोपण युद्ध स्तर पर चलाना पड़ेगा। जमीन के कटाव को रोकने के हर संभव प्रयास करने पड़ेंगे। जिसके लिए सरकार को स्थानीय लोगों का सहयोग लेना पड़ेगा। स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) के भरोसे नहीं चलना चाहिए। ज्यादातर एनजीओ केवल कागजों पर काम करते हैं और दिखावों में विश्वास रखते हैं।


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