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उद्योग जगत के भीष्म पितामाह रतन नवल टाटा का कैंसर युद्ध

कैंसर रोग के महायोद्धा रतन नवल टाटा
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव)
28 दिसम्बर 1937 को पिता नवल टाटा और माता सोनू टाटा ने जिस महान पुत्र को जन्म दिया उसे दुनिया रतन नवल टाटा के नाम से जानती है। आज भी टाटा साहब एक अविवाहित आदमी के नाते अपनी रग-रग को राष्ट्र को समर्पित किए हुए हैं। वे भले ही पद्म भूषण और पद्म विभूषण के सम्मान हासिल कर चुके हों और अभी हाल में असम सरकार ने उन्हें असम के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से आदर दिया हो। वे कई अन्य सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन रतन नवल टाटा केवल कर्तव्य निभाने में विश्वास करते हैं और विनम्रता पूर्वक सम्मान स्वीकार अवश्य करते हैं परन्तु वे किसी ऐसी लालसा में नहीं फँसते। कैंसर के विरूद्ध उन्होंने पवित्र युद्ध छेड़ा हुआ है। 28 फरवरी 1941 के दिन टाटा मेमोरियल हास्पिटल की स्थापना की गयी थी। इसकी स्थापना सर डोराबजी टाटा ट्रस्ट के द्वारा हुई। इनके माता पिता इस महान कार्य के सूत्रधार रहे। रतन नवल टाटा के रक्त में परोपकार की भावना भरी हुई है। मुम्बई के परेल में स्थित इस अस्पताल में कैंसर के उपचार की आधुनिकतम (latest) तकनीकी का प्रयोग होता है। इसे भारत में कैंसर उपचार के सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों में माना जाता है। 1957 में भारत के स्वास्थ्य विभाग ने इस अस्पताल का जिम्मा अपने कंधों पर उठा लिया। अब तो इस संस्थान में रिसर्च कार्य भी जोरों पर चल रहा है। टाटा मेमोरियल सेन्टर (TMC) भारत का पहला ऐसा कैंसर संस्थान भी है जहाँ 1983 में बोन मैरो ट्रांसप्लांट ( bone marrow transplant) की शुरूआत की गयी थी। कुल मिलाकर टाटा घराना कैंसर के विरूद्ध जबरदस्त संघर्ष कर रहा है और देश को कैंसर के इलाज के मामले में एक महत्वपूर्ण मंजिल बनाने की ओर अग्रसर है। टाटा परिवार शुरू से ही परोपकारवादी रहा है। रतन नवल टाटा अपने खानदान की इस महानता पर न केवल खरे उतरे हैं बल्कि इस परम्परा को परवान चढ़ा रहे हैं। उनकी अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं का उनके जीवन में कभी महत्व रहा ही नहीं। नैनो कार का सपना साकार कर उन्होंने दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया था। वे चाहते थे कि छोटी आय वाले लोग भी कार खरीद सकें । रतन नवल टाटा 1962 से 2012 तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे। यह उनकी कर्मठता की मिसाल है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व रतन नवल टाटा को दुनिया का ऐसा कौन सा उद्योगपति होगा जो उन्हें न जानता हो। दो रोज पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिसवा शरमा ने टाटा साहब को सम्मान देने की कोशिश की। ऐसा करके उन्होंने उनके महान व्यक्तित्व की गरिमा को स्वीकारा। 1991 में भारत सरकार ने टाटा स्मारक केन्द्र (TMC) के 50 वें स्थापना दिवस पर डाक टिकट भी जारी किया था। जो इस बात का प्रमाण है कि टाटा परिवार न केवल उद्योग के माध्यम से बल्कि परोपकार के कामों से भी भारत को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने के लिए कमर कसे हुए है।


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