-मराठा साम्राज्य की छत्रपति शिवाजी महाराज जी की पुण्यतिथि पर नमन
ऋषिकेश (दीपक राणा) । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज जी की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हुये आज प्रातःकाल यज्ञ के माध्यम से उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। आज की परमार्थ गंगा आरती शिवाजी महाराज को समर्पित की गयी।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मातृभूमि के लिये सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शिवाजी महाराज जी की देशभक्ति, मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और समर्पण आज के युवाओं के लिये प्रेरणा का स्रोत है। शिवाजी महाराज अद्म्य साहस के धनी योग्य सेनापति तथा कुशल राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने एक मजबूत मराठा साम्राज्य की नींव रखी और दक्कन से लेकर कर्नाटक तक मराठा साम्राज्य का विस्तार किया ऐसे महान शासक को शत-शत नमन।
शिवाजी ने अपने साम्राज्य में एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के साथ कठोर अनुशासन का पालन करने वाली मराठा सेना बनायी थी जो कि छापामार युद्ध नीति में कुशल थी। शिवाजी के नेतृत्व में मराठा सैनिकों ने अनेक उपलब्धियों को हासिल किया था। शिवाजी एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट थे जिन्हें अपनी मातृभूमि से अद्भुत प्रेम था।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिवाजी महाराज धर्मपरायण होने के साथ-साथ धर्म सहिष्णु भी थे। उनके शासनकाल एवं साम्राज्य में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता दी गयी थी और वे सभी धर्मो, मतों और सम्प्रदायों का आदर और सम्मान करते थे। शिवाजी महाराज ने भारतीय संस्कृति, मूल्यों तथा शिक्षा पर अधिक बल दिया।
स्वामी जी ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व के लिये ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना करने वाली भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् के सूत्र को आत्मसात कर शान्ति के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संदेश देती है। मानव जीवन के अस्तित्व के साथ ही भारतीय संस्कृति ने सम्पूर्ण मानवता को जीवन के अनेक श्रेष्ठ सूत्र दिये और आज भी उन सूत्रों और मूल्यों को धारण कर वह निरंतर विकसित हो रही है।
आज की परमार्थ गंगा आरती छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित की गयी। शिवाजी न केवल एक कुशल सेनापति और एक कुशल रणनीतिकार थे बल्कि वे एक देशभक्त भी थे. उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
भारतीय संस्कृति मानव को अपने मूल से; मूल्यों से, प्राचीन गौरवशाली सूत्रों, सिद्धान्तों एवं परंपराओं से जोड़ने के साथ ही अपने आप में निरंतर नवीनता का समावेश भी करती है। जिस प्रकार अलग-अलग नदियां जिनके नाम अलग होते हंै, उनके जल का स्वाद भिन्न होता है परन्तु जब वह समुद्र में जाकर मिलती है तो उन सब का एक नाम हो जाता है और उस जल का स्वाद भी एक ही होता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति ने भी विभिन्न संस्कृतियों के संगम के साथ एकता की संस्कृति को जन्म दिया। आईये आज शिवाजी महाराज की जयंती के पावन अवसर पर भारत की अखंडता और अक्षुण्ता को बनाये रखने हेतु अपना योगदान देने का संकल्प लेते हैं।