इस मंदिर को भी मिले कैद से मुक्ति
सावित्री पुत्र वीर झुग्गीवाला (वीरेन्द्र देव), पत्रकार
काशी विश्वनाथ की नगरी में मुगलकालीन जिहाद का दाग मिटना बहुत जरूरी है। मोदी राज में बाबा विश्वनाथ की नगरी चमक उठी है। इस चमक में अभी भी एक काला दाग है जिसे धोए बिना काशी को पवित्र नहीं किया जा सकता है। यहाँ बाबा विश्वनाथ परिसर के एक हिस्से में एक कथित मस्जिद अभी भी खड़ी है जो कि सनातन् धर्म को आँखें तरेर रही है। बुनियाद से लेकर जमीन के ऊपर तक यह कथित मस्जिद मंदिर है। क्योंकि मूल रूप से यह मंदिर ही थी। महा जिहादी औरंगजेब ने फरमान जारी किया था कि हिन्दुओं के मंदिरों को मटियामेट कर बुतों को धूल धूसरित कर मंदिरों की छाती पर मस्जिद खड़े किए जाएं। औरंगजेब कहता था कि हिन्दू मूर्ति पूजा करके कुफ्र फैला रहें हैं। मूर्ति पूजा को जिहादी कुफ्र फैलाना कहते हैं। इसी बुनियाद पर तो इस्लाम का जन्म हुआ था। कट्टर मुसलमान अपनी बुनियाद को भला कैसे नजरअंदाज कर सकता है। ज्ञानवापी मंदिर का मामला अदालत में है। परन्तु सनातन् संस्कृति पर हुए हमले में हिन्दुओं को वही करना चाहिए जो कि औरंगजेब के समय नहीं हो पाया। औरंगजेब के जिहादी फरमान से पहले जो मंदिर था वह अब भी मंदिर ही होना चाहिए। बात 17वीं सदी की है। उसी समयकाल के हिसाब से इंसाफ होना चाहिए न कि आज के हिसाब से। भारत के मुसलमानों को आगे आकर हिन्दुओं का साथ देना चाहिए और कहना चाहिए कि चलो, 17वीं शताब्दी के भयंकर गुनाह को धो डाला जाए और गंगा जमुनी संस्कृति का उदाहरण कायम किया जाए। एक आजीवन अंधा व्यक्ति भी हाथ से टटोल कर घोषणा कर सकता है कि यह तो मंदिर की दीवार है। इतने ज्वलंत जीते जागते प्रमाण के रहते भी इस मस्जिद को तोड़ा नहीं जा रहा है। जब स्पष्ट दिख रहा है कि कथित मस्जिद का आधार मंदिर है तो फिर इसमें न्यायालय का कीमती वक्त क्यों जाया किया जा रहा है। आज के मुसलमान आखिर क्यों जिहादी औरंगजेब का साथ दे रहे हैं। इतना होने के बावजूद भी ये लोग भाई चारे की बात किस मुँह से कर पा रहे हैं। यही स्थिति मथुरा के कृष्ण मंदिर की है। वहाँ भी जिहाद के दाग को धोना बहुत जरूरी है। एक बड़े सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन की जरूरत है।
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