-योगी जी बचा लीजिए सदियाँपुर गाँव को
नेशनल वार्ता टीम
माँ गंगा के किनारे है पर भगवान के सहारे है। ग्राम सदियाँपुर की विपदा पर कलेजा मुँह को आता है। सहा नहीं जाता है और रहा भी नहीं जाता है। मोदी-योगी के राज में इस गाँव के पिछड़ेपन की पीड़ा से दिल दहल जाता है। किसानों का गाँव है हर आदमी किसान कहाता है पर इनके शोषण पर फिरंगियों का बेरहम जमाना भी फीका पड़ जाता है। मुगलिया सल्तनत की लूट का युग तक इस गाँव की दुर्दशा के आगे खुद को बौना पाता है। हम आजादी के दौर में हैं तो सदियाँपुर गाँव किस दौर में है। हमें माथापच्ची करने पर भी यह समझ नहीं आता है।
ग्राम सदियाँपुर, मौजा बेहटा, तहसील बिल्हौर, थाना शिवराजपुर, जनपद कानपुर नगर में पलायन से बचकर करीब बीस परिवारों का यह गाँव है। मुख्य सड़क लगभग एक किलोमीटर के फासले पर है। ऐतिहासिक कस्बा बिठूर और इलाके के सुप्रसिद्ध मन्दिर खेरेश्वर के बीचोबीच बसा है यह बदनसीब गाँव। दो किलोमीटर पर एक प्राइमरी स्कूल एक जूनियर हाई स्कूल है। कोई प्राथमिक अस्पताल तक आसपास नहीं। इस गाँव से बामुश्किल पाँच किलोमीटर के फासले पर दौड़ती है रेलगाड़ी।
मुख्य सड़क से एक किलोमीटर पर स्थित गाँव सदियाँपुर को जोड़ने वाला एक मात्र कच्चा रास्ता बुढ़ाता जा रहा है। प्रधानमंत्री की योजना के तहत करीब तीन साल पहले बिजली तो पहुँची मगर यहाँ के लोग बिजली के फायदे से करीब-करीब वंचित हैं। वह इसलिए कि अकसर किसी न किसी फौल्ट के बहाने बिजली नदारद ही रहती है। शिकायत सुनी नहीं जाती। सुनी जाती है तो गाँव वालों से धन की उगाही करके ही इस गडबड़ को दूर किया जाता है। लाईनमैन क्या पूरे लाट़ साहब हैं।
शौचालय बने जरूर मगर बदहाली के शिकार हैं। वजह, बेहद कामचलाऊ ढंग से इस गाँव के शौचालय बनाए गए। शौचालयों के निर्माण में धन के गबन की जाँच करे तो कौन। क्या जाँच कभी होगी भी। इस चौतरफा दुर्दशा के शिकार ग्रामीण पलायन को विवश हो रहे हैं। अपने घर-द्वार छोड़कर भविष्य की तलाश में भटक रहे हैं। माँ गंगा गाँव के किनारे से सरसराती बह रही है। मानो यह कह रही है। मैं राजनीति वालों के पाप धोना नहीं जानती। मैं भ्रष्टाचारियों को श्राप देना नहीं जानती।
गाँव में न कोई पंचायत घर न कोई साझा पंचायती भवन जो गाँव के नौजवानों की शादी ब्याह, समारोह आदि में काम आए। इस गाँव से कुछ दूरी पर सुप्रसिद्ध खेरेश्वर मन्दिर में हर साल महाशिवरात्रि और सावन के पर्व पर दूर दराज के भक्तगण बड़ी संख्या में आकर मेलों में शामिल होते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पेशवा नाना साहेब का खूबसूरत महल बिठूर में हुआ करता था जिसे फिरंगियों ने अपनी तोपों से मटियामेट कर दिया था। नाना साहेब की 21वर्षीय बेटी नैना ध्वस्त होते महल के साथ शहीद हो गयी थी। ऐसे ऐतिहासिक महत्व के बिठूर से यह गाँव महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। इसी माह दिसम्बर में नेशनल वार्ता की टीम इस गाँव के भ्रमण पर थी। गाँव की दुर्दशा पर लिखते हुए टीम को हैरानी हो रही है कि 21वीं सदी में स्वतंत्र भारत के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी इतना गिर सकते हैं। गाँव के लाचार लोगों का बेरहमी से शोषण कर सकते हैं। छोटी सरकारें आती हैं अपना और अपने गाँव के विकास तक ही सीमित रहती हैं पर यह गाँव आज भी विकास से कोसों दूर है जो स्वास्थ, शिक्षा, सड़क, पानी आदि की सुविधाओं से वंचित है, यह सब हमारे लिए किसी सदमे से कम नहीं। योगी जी के रहते ऐसा होना हमें एक भयंकर कल्पना जैसा लग रहा है। हालाँकि, यह सब सोलह आने सच है।